लक्सर का एक अधिकारी
अधिकारी का अड़ियल नियम
बाबा जयंत सिंह एक बड़े और प्रसिद्ध सत्संग केंद्र के उच्च अधिकारी थे। सत्संग की सेवा और व्यवस्था उनके मार्गदर्शन में चलती थी, और वह चाहते थे कि सेवादार केवल और केवल सत्संग की सेवा में ही लीन रहें।
बाबा जयंत के अधीनस्थ कई निष्ठावान सेवादार थे, जो अपने पारिवारिक और धार्मिक जीवन के साथ सत्संग की सेवा को भी संतुलित रखने का प्रयास करते थे। लेकिन बाबा जयंत का एक अजीब और सख्त नियम था—जब भी कोई बड़ा धार्मिक त्योहार आता, जैसे कि होली, दीवाली, या विशेष रूप से करवा चौथ, वह जान-बूझकर उसी समय सेवादारों की एक लंबी और अनिवार्य मीटिंग रख देते।
सेवादार आपस में फुसफुसाते थे, "बाबा जी ऐसा क्यों करते हैं? क्या उन्हें पता नहीं कि इस दिन हमारे घरों में परंपराएं निभाई जाती हैं?"
लेकिन बाबा जयंत इस बात की जरा भी परवाह नहीं करते थे कि उनके सेवादार इन क्रियाकलापों में भाग लेना चाहते हैं या नहीं। उनका हमेशा यही प्रयास रहता था कि किसी भी तरीके से उनके सेवादार परंपराओं में न उलझें। उनका मानना था कि इन बाहरी रीति-रिवाजों से ध्यान हटता है और समर्पण में कमी आती है।
यह बात तब और भी बढ़ गई जब करवा चौथ का त्योहार आया। यह दिन कई सेवादारों, खासकर महिला सेवादारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने उम्मीद की थी कि उन्हें छुट्टी मिलेगी। लेकिन बाबा जयंत ने ठीक उसी शाम प्रसाद वितरण की एक विशेष मीटिंग रख दी।
मीटिंग शुरू हुई, और बाबा जयंत ने अपनी बात ख़त्म करते ही बड़े प्रेम से, मगर ज़ोर देते हुए, सभी महिला सेवादारों को प्रसाद (जो वास्तव में एक सामान्य भोजन था) खाने के लिए ज़ोर-जबर्दस्ती करने लगे।
"सेवादारी, यह ईश्वर का प्रसाद है," उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "इसे तुरंत ग्रहण करो। ये व्रत और उपवास तो बस मन का वहम हैं, हमें इनसे ऊपर उठना है।"
महिला सेवादार असमंजस में थीं। कुछ ने नम्रता से मना किया, यह कहते हुए कि वे बाद में खाएँगी, लेकिन बाबा जयंत नहीं माने।
मीटिंग ख़त्म होने के बाद, सेवादारों के बीच यह चर्चा ज्यादा होशियार होने लगी।
एक अनुभवी सेवादार, जिनका नाम प्रकाश था, ने कहा, "यह सिर्फ संयोग नहीं है। हर साल, हर बड़े त्योहार पर मीटिंग... और खासकर आज की प्रसाद वाली जबरदस्ती। बाबा जी जान-बूझकर ऐसा कर रहे हैं।"
एक महिला सेवादार, सुनीता, ने दुख से कहा, "हाँ, उन्हें लगता है कि ऐसा करके वह हमें सिर्फ सत्संग की ओर खींच रहे हैं, पर वह नहीं समझते कि ये परंपराएं हमारे परिवार और निष्ठा का हिस्सा हैं। हमें सेवा में कोई कमी नहीं है, फिर भी वह हमें इन चीज़ों से दूर क्यों करना चाहते हैं?"
एक दिन फिर सत्संग की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हर कार्यक्रम को बंद कर दिया गया किसी भी रीति रिवाज को खत्म करके अगर हम सत्संग आ रहे हैं और सत्संग में अधिकतम देखा जाता है कि पुराने ग्रंथ का ही विचार किया जाता है जहां से यह सब रीति रिवाज उत्पन्न हुए हैं