Type Here to Get Search Results !

मनुष्य जन्म, निरंकार और विश्वास की शक्ति: एक सार्थक जीवन की ओर

 मनुष्य जन्म, निरंकार और विश्वास की शक्ति: एक सार्थक जीवन की ओर

यह कथन अत्यंत गूढ़ और सत्य के निकट है कि मनुष्य जन्म चौरासी लाख योनियों के भ्रमण के पश्चात प्राप्त होता है। यह एक अमूल्य अवसर है, एक ऐसा मंच जहां हम चेतना के उच्चतम स्तर पर पहुंचकर अपने अस्तित्व के वास्तविक उद्देश्य को समझ सकते हैं। परंतु, विडंबना यह है कि इस दुर्लभ जन्म को पाकर भी अधिकांश मनुष्य दुखों, चिंताओं और अतृप्त इच्छाओं के जाल में उलझे रहते हैं। जब जीवन कष्टमय हो जाता है, तो यह स्वाभाविक है कि मन में यह तमन्ना उठे कि काश! एक और अवसर मिलता, एक बेहतर जीवन जीने का, अपनी अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने का। यह चक्र निरंतर चलता रहता है, क्योंकि मूल समस्या इच्छाओं का अंतहीन होना और उनकी पूर्ति में ही सुख ढूंढना है।

इस चक्र से मुक्ति का मार्ग है – निरंकार का बोध। निरंकार, वह निराकार, सर्वव्यापी, शाश्वत शक्ति, जो इस संपूर्ण सृष्टि का आधार है। जिसने इस परम सत्य को जान लिया, उसके लिए जीवन की जटिलताएं सरल होने लगती हैं। दुख उसे विचलित नहीं करते, क्योंकि वह जानता है कि यह सब परिवर्तनशील है, माया का खेल है। उसकी दृष्टि व्यापक हो जाती है, और वह छोटी-छोटी बातों में उलझने के बजाय जीवन के वृहत्तर उद्देश्य को समझने लगता है। उसके लिए सुख-दुख, मान-अपमान, लाभ-हानि सब सम हो जाते हैं, क्योंकि उसका चित्त निरंकार में स्थिर हो जाता है।

अब प्रश्न उठता है निरंकार से मांगने या न मांगने का। कुछ विचारधाराएं कहती हैं कि निरंकार से कुछ भी मांगना उचित नहीं, क्योंकि वह तो स्वयं ही सब जानता है और हमारे कर्मों के अनुसार हमें प्रदान करता है। यह एक दृष्टिकोण है, जो वैराग्य और समर्पण पर बल देता है। परंतु, इस तर्क का दूसरा पहलू भी विचारणीय है। यदि निरंकार सर्वशक्तिमान है, सबका दाता है, और हमारा उस पर अटूट विश्वास है, तो अपनी आवश्यकताओं, अपनी व्यथाओं को उसके समक्ष रखने में क्या हानि है?

वास्तव में, निरंकार से मांगना केवल भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह एक प्रकार से अपने विश्वास की अभिव्यक्ति है। जब हम संकट में, दुविधा में या किसी अभिलाषा के साथ निरंकार को पुकारते हैं, तो हम अवचेतन रूप से यह स्वीकार कर रहे होते हैं कि ‘हाँ, एक शक्ति है जो मेरी सुन सकती है, जो मेरी सहायता कर सकती है।’ यदि हम कभी कुछ मांगेंगे ही नहीं, तो हमें यह अनुभव कैसे होगा कि हमारा विश्वास कितना गहरा है? जब हमारी सच्ची पुकार सुनी जाती है, जब हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं (चाहे वह किसी भी रूप में हो), तो हमारा विश्वास और भी दृढ़ होता है। यह एक सकारात्मक प्रतिक्रिया चक्र बनाता है।

निरंकार कोई कठोर न्यायाधीश नहीं, बल्कि एक करुणामयी सत्ता है। वह हमारे भावों को समझता है। मांगने का अर्थ यह नहीं कि हम उसे आदेश दे रहे हैं, बल्कि यह हमारे समर्पण का, हमारी निर्भरता का प्रतीक है। एक बालक अपनी माँ से निःसंकोच मांगता है, क्योंकि उसे माँ की क्षमता और प्रेम पर पूर्ण विश्वास होता है। उसी प्रकार, जब हम निरंकार से मांगते हैं, तो हम अपने और उस परम सत्ता के बीच एक जीवंत संबंध स्थापित करते हैं।

यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि निरंकार हमारी हर मांग को उसी रूप में पूरा करे, यह आवश्यक नहीं। वह जानता है कि हमारे लिए क्या श्रेयस्कर है। कभी-कभी हमारी मांगी हुई वस्तु हमें न मिलकर कुछ और बेहतर मिल जाता है, या हमें वह शक्ति और समझ मिल जाती है जिससे हम अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकें। यह भी तो उसकी कृपा का ही एक रूप है।

अतः, मनुष्य जन्म की सार्थकता इसी में है कि हम निरंकार को जानें, उस पर अटूट विश्वास रखें और अपने जीवन को सकारात्मक दिशा दें। यदि मन में कोई अभिलाषा है, कोई कष्ट है, तो उसे निरंकार के समक्ष रखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। यह आपके विश्वास को परखने का और उसे प्रगाढ़ करने का एक माध्यम भी है। विश्वास के साथ की गई प्रार्थना में अद्भुत शक्ति होती है, और निरंकार अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनता है। इस जन्म को व्यर्थ न जाने दें, इसे निरंकार के ज्ञान और प्रेम से आलोकित करें, और एक सार्थक, आनंदमय जीवन की ओर अग्रसर हों।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

sewa