सत्संग में दान किए गए पैसे का हिसाब क्यों ज़रूरी है? एक गंभीर चिंतन
आज की दुनिया एक ऐसी दौड़ बन गई है जिसमें हर इंसान शामिल है। सुबह आंख खुलते ही बस एक ही लक्ष्य होता है - कैसे ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाया जाए। इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में सुकून और शांति की तलाश में लोग अक्सर धार्मिक स्थानों, सत्संगों और आध्यात्मिक गुरुओं की शरण में जाते हैं। वहां उन्हें थोड़ी देर के लिए ही सही, मन की शांति मिलती है। और अपनी श्रद्धा, आभार या पुण्य कमाने की भावना से वे दिल खोलकर दान भी करते हैं, खासकर पैसे का दान।
इसमें कोई शक नहीं कि दान करना हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और इसे एक नेक कार्य माना जाता है। यह हमारी आत्मा की शुद्धि करता है और जरूरतमंदों की मदद का माध्यम बनता है। लेकिन पिछले कुछ समय से दान, खासकर नकदी के दान को लेकर एक चिंताजनक पहलू सामने आया है, जिसकी ओर ध्यान देना बेहद आवश्यक है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब हम अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई को किसी ऐसे स्थान पर दान करते हैं जहाँ उसके खर्च का कोई स्पष्ट हिसाब नहीं रखा जाता।
आप खुद सोचिए, जिस पैसे को कमाने के लिए हम दिन-रात एक करते हैं, पसीना बहाते हैं, कितनी मुश्किलों का सामना करते हैं, उस पैसे की एक-एक पाई की कीमत हम जानते हैं। यही पैसा हमारे परिवार की जरूरतों को पूरा करता है, बच्चों की शिक्षा और भविष्य का आधार बनता है। ऐसे में जब हम इसी मेहनत के पैसे को सत्संग या किसी अन्य धार्मिक संस्था में दान करते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि हमारे मन में यह जानने की जिज्ञासा हो कि हमारा दान किस नेक काम में लग रहा है।
लेकिन अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब दान किए गए पैसों के खर्च के बारे में पूछा जाता है, तो जवाब मिलता है कि 'यह तो समर्पित हो गया है' या 'यह ईश्वर के कार्य में लगा है', और इसके आगे कोई हिसाब नहीं दिया जाता। पैसे का हिसाब-किताब कहां है, यह किसी को नहीं पता होता। यह पारदर्शिता की कमी मन में कई सवाल खड़े करती है।
यह सवाल सिर्फ हिसाब मांगने या अविश्वास का नहीं है, बल्कि एक गंभीर चिंता का है। हमारा पैसा, जिसे हमने इतनी ईमानदारी से कमाया है, अगर बिना हिसाब के कहीं भी खर्च हो रहा है, तो इस बात की क्या गारंटी है कि वह सही और नेक कामों में ही लग रहा है? क्या पता, कहीं वही पैसा किसी गलत या अनुचित कार्य में इस्तेमाल हो रहा हो?
और यहीं पर सबसे बड़ा खतरा छिपा है। हमारे शास्त्र और धर्म ग्रंथ सिखाते हैं कि हम जैसा करते हैं, उसका फल हमें मिलता है। अगर हमारा दान किया हुआ पैसा, भले ही हमने नेक नीयत से दिया हो, किसी गलत काम में इस्तेमाल होता है, तो क्या हम अनजाने में ही उस गलत काम के भागीदार नहीं बन जाते? क्या उसका नकारात्मक प्रभाव हमारे अपने भाग्य या कर्मों पर नहीं पड़ेगा? क्योंकि कहीं न कहीं, हमारी मेहनत का पैसा उस कार्य का आधार बना है। यह सोच ही मन को विचलित कर देती है।
तो फिर क्या करें? क्या दान करना छोड़ दें? बिलकुल नहीं। दान तो अवश्य करना चाहिए, लेकिन सोच समझकर। इस चिंता से बचने और यह सुनिश्चित करने का एक बहुत ही कारगर और सरल तरीका है कि आप पैसे के बजाय वस्तुएं दान करें।
वस्तुओं का दान कई मायनों में बेहतर है, खासकर जब आपको पैसे के खर्च पर भरोसा न हो। आप खाने-पीने की चीजें दान कर सकते हैं – अनाज, दालें, तेल, गुड़, चीनी, फल, सब्जियां। ये चीजें सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचेंगी और उनका पेट भरेंगी। आप कपड़े दान कर सकते हैं – सर्दियों में ऊनी कपड़े, कंबल, चादरें, गर्मियों में सूती कपड़े। ये चीजें गरीबों को तन ढकने और सर्दी-गर्मी से बचने में मदद करेंगी। आप दवाएं दान कर सकते हैं, बच्चों के लिए किताबें और पढ़ाई का सामान दान कर सकते हैं।
वस्तुओं के दान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि उनका इस्तेमाल सीधा और स्पष्ट होता है। आप अपनी आँखों से देख सकते हैं कि आपका दान किस काम में आ रहा है। जब आप अनाज दान करते हैं, तो वह सीधे लंगर में इस्तेमाल होता दिख सकता है। जब आप कपड़े दान करते हैं, तो वे जरूरतमंदों को पहने हुए दिखाई दे सकते हैं। इसमें पारदर्शिता होती है और मन में कोई शंका नहीं रहती। आपको पता होता है कि आपकी मेहनत की कमाई या आपका दान किसी के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहा है।
यह सोचना गलत नहीं है कि हमारा कमाया हुआ धन, जिसे कमाने में हमारा खून-पसीना लगा है, वह सही जगह पर इस्तेमाल हो। दान करते समय हिसाब मांगना या पारदर्शिता की उम्मीद करना कोई बुरी बात नहीं है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करें, चाहे वह अपने लिए हो या दान के रूप में किसी और के लिए।
तो अगली बार जब आप सत्संग या किसी धार्मिक स्थान पर दान करने जाएं, तो पैसे का लिफाफा देने से पहले एक बार ठहरकर सोचें। क्या आप इस पैसे के खर्च के बारे में निश्चित हैं? अगर नहीं, तो क्यों न पैसे के बजाय कुछ उपयोगी वस्तुएं दान की जाएं? यह न केवल आपको मानसिक शांति देगा कि आपका दान सही जगह पहुंचा है, बल्कि आपको उस चिंता से भी मुक्त रखेगा कि कहीं अनजाने में ही आप किसी गलत कार्य का हिस्सा न बन जाएं। दान अवश्य करें, यह हमारी आत्मा के लिए अच्छा है, लेकिन दान करते समय विवेक और जागरूकता बनाए रखना और भी आवश्यक है।