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धार्मिक संत भी अपने वादे से मुकर जाते हैं सबसे बड़ी विडंबना है,shiksha mitra

 नमस्कार दोस्तों

जिस तरीके से पहले की तरह शिक्षामित्र अपने अभियान को बहुत अच्छी तरीके से चला रहे थे, अब देखने को मिल रहा है कि सभी शिक्षामित्र शांत रूप से बैठ चुके हैं क्योंकि कहीं ना कहीं उनके साथ एक ऐसा धोखा हुआ है क्योंकि अगर वह यज्ञ की तैयारी करते हैं तो जिन शिक्षामित्रों का यूपीटीईटी क्लियर नहीं है उसने प्रति भाग नहीं ले सकते हैं क्योंकि एग्जाम की डेट भी उसी समय की है,
और इस यज्ञ में केवल शिक्षा मित्रों को अपने ऊपर से बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी कांग्रेस की छाप को अपने ऊपर से उतर आने के लिए ही यह यज्ञ किया जा रहा था, जबकि यह तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था, अंतिम समय में इस यज्ञ का आयोजन किया जाना और शिक्षामित्रों को फिर से एक नया आश्वासन दिया जाना कहीं ना कहीं वास्तव में गलत है लेकिन उनकी आवाज को उठाने वाले नेता अपने आप को मुख्यमंत्री से कम नहीं समझते हैं, इस वजह से वह भी चाहते हैं कि शिक्षामित्रों की समस्या निरंतर बनी रहे और जिस तरीके से उगाई की गई थी उसमें भी कमी को बताते हुए महायज्ञ डाल दिया जिसकी वजह से देखा गया कि बहुत सारे शिक्षामित्रों का मनोबल टूट गया और इस महंगाई के दौर में उन्होंने अपना पेट काटकर कोई ₹5000 दे रहा है कोई 11 सो रुपए दे रहा है अपने ऊपर से विपक्षी पार्टियों की इच्छा को छुड़वाने के लिए लेकिन सोचने वाली बात है क्या इनकी परिवारों के दर्द इन राजनेताओं को धार्मिक संतो को नहीं दिखाई देता है

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