निरंकार की अनुभूति कैसे करें?
परिचय:
हम सभी जीवन में किसी ऐसे सहारे की तलाश करते हैं जो सदा अडोल, अटल और अपार हो। वह जो हर सुख-दुख में हमारे साथ हो, और जिसकी उपस्थिति से जीवन में एक अद्भुत शांति और स्थिरता का अनुभव हो। यही अनुभव है — निरंकार की अनुभूति का। लेकिन सवाल यह उठता है: क्या निरंकार को देखा जा सकता है? क्या उसकी अनुभूति सचमुच संभव है? और यदि हाँ, तो कैसे?
---
निरंकार क्या है?
"निरंकार" का अर्थ है — जिसका कोई आकार नहीं, जो सर्वव्यापक है, जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है, और जिसका अनुभव मन, आत्मा और अंतरात्मा से किया जा सकता है।
निरंकार को हम अपनी आँखों से नहीं, अपने मन और श्रद्धा से अनुभव कर सकते हैं। यह अनुभव तभी संभव होता है जब हम अपने अंदर के अहंकार, द्वेष, और भ्रम को त्याग कर सच्चे हृदय से सत्य को अपनाते हैं।
---
निरंकार की अनुभूति के लिए आवश्यक मार्गदर्शक तत्व
1. सतगुरु की कृपा
महापुरुषों ने कहा है:
"गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिले न मोक।"
सतगुरु ही वो दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं जिससे हम निरंकार को "देख" सकते हैं। सतगुरु हमें ईश्वर का वास्तविक स्वरूप बताते हैं — जो न मंदिर में है, न मस्जिद में, बल्कि हर ओर, हर श्वास में, हर जीव में है। जब सतगुरु से 'ब्रह्मज्ञान' मिलता है, तभी आत्मा की आँखें खुलती हैं और निरंकार का अनुभव संभव होता है।
---
2. सेवा, सिमरन और सत्संग
सेवा:
जब हम निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करते हैं, तो ईश्वर हमारे भीतर और हमारे कर्मों में प्रकट होता है। सेवा आत्मा को शुद्ध करती है और निरंकार से जुड़ाव बढ़ाती है।
सिमरन:
नाम सिमरन — निरंकार के नाम का स्मरण — सबसे सरल लेकिन सबसे शक्तिशाली साधना है। जब हम "धन निरंकार" या "ओम" जैसे शब्दों का बार-बार उच्चारण करते हैं, हमारा मन स्थिर होता है और हम दिव्यता से जुड़ जाते हैं।
सत्संग:
सत्संग का अर्थ है "सत्य का संग" — जहाँ भगवान के भक्त, संत और महापुरुष सत्य की बातें करते हैं। सत्संग आत्मा को ऊर्जावान करता है और निरंकार की अनुभूति को गहरा करता है।
---
3. अहंकार और भ्रम का त्याग
जब तक मन में "मैं", "मेरा", "मुझसे", "मैंने किया" जैसी भावनाएं रहती हैं, तब तक निरंकार की अनुभूति संभव नहीं होती।
जैसे ही हम खुद को एक साधन समझते हैं — कि जो कुछ हो रहा है, वह निरंकार की कृपा से हो रहा है — तभी हमें वास्तविक शांति का अनुभव होता है।
---
4. वर्तमान में जीना (Being in the Moment)
निरंकार अतीत या भविष्य में नहीं है, वह वर्तमान क्षण में है।
जब हम अपने हर पल में सजग रहते हैं, हर क्रिया में भगवान को याद करते हैं, तो हम हर समय निरंकार की अनुभूति कर सकते हैं।
---
5. शुद्ध और सरल जीवन जीना
निरंकार की अनुभूति केवल भजन-कीर्तन या ध्यान में ही नहीं होती, बल्कि हर कर्म में होती है — यदि हम उसे ईश्वर को अर्पित कर दें।
सरल जीवन, उच्च विचार और सच्चे कर्म के साथ अगर हम जीवन जीएं, तो ईश्वर की निकटता हमें हर समय अनुभव होने लगती है।
---
6. दूसरों में ईश्वर को देखना
सभी धर्मों ने यही सिखाया है —
"जिसमें तू देखे सबमें वही ईश्वर है।"
जब हम हर जीव में निरंकार को देखना शुरू कर देते हैं, तब संसार का दृष्टिकोण ही बदल जाता है। नफरत, भेदभाव, ईर्ष्या खत्म होती है और मन में प्रेम, करूणा और दया का संचार होता है। यही है — निरंकार की सच्ची अनुभूति।
---
अनुभव की व्याख्या (Personal Feeling vs. Logical Knowledge)
निरंकार को अनुभव करना कोई बौद्धिक ज्ञान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव है। जैसे मिठास को चखकर ही जाना जा सकता है, वैसे ही निरंकार को केवल अनुभूत किया जा सकता है। यह अनुभव शब्दों से परे, मन से परे और आत्मा के भीतर होता है।
---
उदाहरण के रूप में:
मान लीजिए आप किसी पार्क में बैठे हैं। हल्की हवा चल रही है, पक्षी गा रहे हैं, और सूरज की किरणें आपके चेहरे को छू रही हैं। यदि उस क्षण आप एकदम शांत मन से सिर्फ अनुभव करें — बिना किसी विचार के — तो आपको लगेगा कि कुछ तो है जो इस सबको चला रहा है, जो इस लय को बनाए हुए है। यही "कुछ" है — निरंकार।
---
निष्कर्ष
निरंकार की अनुभूति कोई जटिल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक सहज भावनात्मक जुड़ाव है।
सतगुरु के बताये मार्ग पर चलकर, सेवा-सिमरन और सत्संग के सहारे, जब हम अपने मन को शुद्ध करते हैं, तो हमें जीवन में निरंकार का हर क्षण अनुभव होता है।
निरंकार कोई बाहरी शक्ति नहीं, बल्कि अंदर की सच्ची रोशनी है — जिसे जानकर जीवन ही बदल जाता है।
---
अंत में एक विनम्र प्रार्थना:
आओ मिलकर सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के चरणों में अरदास करें कि हमें ऐसा विवेक, ऐसा मन, और ऐसी दृष्टि प्राप्त हो जिससे हम हर पल निरंकार की अनुभूति करते रहें और उसी अनुभूति से भरा हुआ जीवन जी सकें।
धन निरंकार जी।