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किसान नहीं पश्चिम बंगाल के चुनाव जरूरी है

 किसान दिल्ली के बॉर्डर पर सर्दी में अपनी जमीनों को बचाने के लिए लगातार आंदोलन में बढ़ोतरी करता जा रहा है लेकिन कहीं ना कहीं राजनीतिक पार्टियां अपना अगला चुनाव बंगाल पर ध्यान दे रहा है बंगाल में बड़ी बड़ी रैलियां हो रही हैं क्योंकि कहीं ना कहीं वही इस समय सबसे बड़ा राजनीतिक पार्टियों के लिए लक्ष्य है हमारा पेट पालने वाले किसान सर्दी में मरे कटे कुछ भी हो सरकार के नुमाइंदों को कोई फर्क नहीं पड़ता है

 लगातार किसान अपनी आवाज को उठाना सीख रहा है पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि अगर यह कानून वापस हो जाते हैं तो कहीं ना कहीं किसान की जीत ही होगी और किसान अच्छी तरीके से देश की सेवा तरीके से कर रहा है और तन-मन-धन लगाकर करने लगेगा लेकिन कोई भी सरकार का नुमाइंदा उन तक नहीं पहुंच रहा है क्योंकि इस समय पश्चिम बंगाल के चुनाव पर पूरी तरीके से ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि सरकार पूरी में जो टीमें है सभी विधायक उसी के हैं इसलिए उसे कोई भी नहीं सकता है.

किसान सर्दी में अपनी आवाज को उठा रहा है लेकिन कुछ लोग जो हीटर जलाकर अपने घरों के अंदर बैठे हैं उनको ऐसा लग रहा है किसान जिद कर रहा है लेकिन अगर कल को जो आज गेहूं आटा खा रहे हैं यह महंगा हो गया और उसके बाद हम लोग कहां जाएंगे हम किसानों को दोष नहीं दे सकते किसानों का साथ अगर निभा सके तो जरूर निभाई है लेकिन किसान इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी बड़ी उसकी जमीन को हड़पने किया है मेरा मानना यही है कि सारी जमीनी दो व्यापारियों को दे देनी चाहिए ताकि वही सब कुछ करते रहे और बस देश के अंदर उन्हीं का नाम हो और वो जितना चाहे पैसा कमा लें क्योंकि उनकी हर नस नस में पैसा खाया जाता है आता नहीं खाया जाता है कितनी बड़ी विडंबना है किन दो व्यापारियों के लिए पूरा देश एकजुट नहीं हो पा रहा है सबको अपनी जमीन को दे देनी चाहिए ताकि यह खुश हो जाए और हमारे जो किसान सर्दियों में बैठे हैं घर जाकर सोचे कि अब क्या उगाना है और क्या-क्या देना  है 


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