# सत्संग का रविवार और कारोबार का द्वंद्व
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आजकल यह एक आम समस्या बन गई है कि जहां सत्संग की संख्या बढ़नी चाहिए, वहां वह कम होती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण है सत्संग और कारोबार के बीच का द्वंद्व। यह देखा गया है कि जो लोग सत्संग की व्यवस्था से जुड़े हैं, उनमें से कुछ अपने व्यवसाय को रविवार के दिन भी खुला रखना चाहते हैं। इस वजह से वे रविवार की सत्संग को स्थापित नहीं करना चाहते। परिणाम यह होता है कि सत्संग का दिन बदल दिया जाता है, और इसका सीधा असर सत्संग में आने वाले लोगों की संख्या पर पड़ता है।
## जब सत्संग के लिए समय नहीं, कारोबार के लिए सब कुछ है
रविवार का दिन बच्चों की छुट्टी का दिन होता है। यह दिन परिवार के लिए, आराम के लिए और सबसे बढ़कर, आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे उपयुक्त होता है। सत्संग में बच्चों का शामिल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि आज के बच्चे ही आने वाले समय में संत और सेवक बनेंगे। अगर हम उन्हें बचपन से ही सत्संग से नहीं जोड़ेंगे, तो आने वाली पीढ़ी में सत्संग की भावना कैसे बढ़ेगी?
लेकिन, जब सत्संग को रविवार के बजाय किसी और दिन रखा जाता है, तो बच्चे स्कूल या कॉलेज में होते हैं। वे सत्संग में शामिल नहीं हो पाते। यह सत्संग को भविष्य में बढ़ने से रोकता है। ऐसा लगता है कि कुछ लोगों के लिए सतगुरु के आदेश से ज्यादा अपने व्यापार का मुनाफा महत्वपूर्ण है। वे इस बात को भूल जाते हैं कि सतगुरु का आदेश ही सबसे ऊपर है।
## सतगुरु के आदेश का विरोध
सतगुरु ने स्पष्ट रूप से कहा है कि **सत्संग रविवार को सत्संग भवन पर ही होना चाहिए**। यह आदेश केवल एक नियम नहीं है, बल्कि यह सत्संग के प्रसार के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है। इस आदेश को अनदेखा करके किसी और दिन सत्संग रखना सतगुरु की बात का सीधा विरोध है। यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं अहंकार और स्वार्थ हावी हो रहा है।
सत्संग का उद्देश्य लोगों को प्रेम, भक्ति और सेवा के मार्ग पर लाना है। लेकिन जब हम अपने स्वार्थ के लिए सतगुरु के आदेश को नजरअंदाज करते हैं, तो हम सत्संग के मूल उद्देश्य को ही कमजोर करते हैं। यह एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान तुरंत होना चाहिए।
## समाधान क्या है?
इस समस्या का समाधान सरल है। हमें अपनी प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करना होगा। अगर हम सच में चाहते हैं कि सत्संग का प्रचार-प्रसार हो, तो हमें सतगुरु के आदेश का पालन करना होगा।
* **रविवार को सत्संग को प्राथमिकता दें:** कारोबार को रविवार को बंद करके सत्संग को प्राथमिकता देना एक छोटी सी कुर्बानी है, जिसके दूरगामी परिणाम बहुत बड़े होंगे।
* **बच्चों को सत्संग से जोड़ें:** बच्चों को सत्संग में लाने के लिए उन्हें प्रेरित करें और रविवार को उनके लिए एक विशेष दिन बनाएं।
* **सत्संग को एक आंदोलन बनाएं:** सत्संग को केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आंदोलन बनाना होगा। ऐसा आंदोलन जो सत्य और भक्ति के मूल्यों पर आधारित हो, न कि कारोबार और स्वार्थ पर।
अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो धीरे-धीरे सत्संग कम होती जाएगी और आने वाली पीढ़ियां सतगुरु के प्रेम और भक्ति से वंचित रह जाएंगी। यह एक बहुत ही गंभीर और भावनात्मक मुद्दा है, जिस पर तुरंत ध्यान देना आवश्यक है।
इस विषय पर आपके क्या विचार हैं? क्या आपके शहर में भी ऐसी समस्या है?