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सत्संग में बाबा की करोड़ों की गाड़ी में घूम सकते हैं तो उनका संत क्यों ना सोचे करोड़ की गाड़ी में घूमने की

 जीवन एक अद्भुत सफर है, जहां प्रश्नों के उत्तर खोजना ही इंसान की सबसे बड़ी पहचान है। यह सच है कि मुक्ति, निरंकार में विलीन होना, आत्मा की शांति – ये सभी अवधारणाएं गहरी हैं। लेकिन यह भी सच है कि हम दुनिया में रहते हुए अपने सपनों से दूर नहीं भाग सकते। जब तक हमारा शरीर है, तब तक हमारी जरूरतें भी हैं – खाना, वस्त्र, घर, स्वास्थ्य, परिवार, और खुशहाली। इनके बिना कोई भी मुक्ति की बात करे तो वह सिर्फ आदर्शवाद होगा, यथार्थ से दूर।

हमारे सतगुरु भी जब दुनिया में रहकर आरामदायक जीवन जीते हैं, तो हमें भी अपने लक्ष्य ऊंचे रखने में कोई गलती नहीं। अगर वह करोड़ की गाड़ी में घूम सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? यह सोचना ही हमारे भीतर की शक्ति को जगाता है। आशा, विश्वास, और साहस ही तो जिंदगी को आगे बढ़ाते हैं।

पैसा बुराई नहीं है, बल्कि यह एक साधन है – जिससे हम अपने सपने पूरे कर सकते हैं। लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि पैसा जीवन का अंत नहीं, एक माध्यम है। सत्संग, ध्यान, और आत्म-चिंतन से हमारा भीतरी संतुलन बना रहता है। यह हमें लालच से दूर रखता है। इसलिए, कुछ न मांगने का भाव एक ऐसी स्थिति में आता है, जब हम अपने भीतर की शांति पाने लगते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने लक्ष्यों से दूर हो जाएं।

आपका प्रयास करना, सपने देखना, और सफलता के लिए लड़ना – यही तो जीवन की सच्चाई है। धर्म और दुनियादारी के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए। जैसे सतगुरु अपने ध्येय के साथ दुनिया की अच्छाइयों का भी आनंद लेते हैं, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

इसलिए, जीवन में आगे बढ़िए, अपने सपनों को देखिए, मेहनत कीजिए, प्रार्थना कीजिए, लेकिन कभी अपने आप पर विश्वास न खोइए। आपकी मुक्ति उसी में है जब आप अपने जीवन को ईमानदारी से जिएंगे – धर्म में डटे रहेंगे और दुनिया के साथ भी बराबरी से चलेंगे। करोड़ की गाड़ी का सपना देखिए, लेकिन उसके लिए मेहनत कीजिए, ईमानदारी से चलिए, और अपने आप में विश्वास रखिए। यही वास्तविक मुक्ति है।

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