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ध्यान से पढ़े फिर छोटे-छोटे इलाकों में मेरी स्टेज पर ड्यूटी लगती है अब मैं सत्संग में जब भी जाऊंगा जब मेरी स्टेज पर ड्यूटी लगेगी गजब विडंबना है

विचार: सत्संग में निष्ठा और समर्पण का महत्व

सत्संग, सेवा, और सतगुरु का सान्निध्य हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाले मार्ग हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि जहां सेवा और सत्संग के माध्यम से आत्मिक विकास होता है, वहीं कभी-कभी सेवा के रूप और उसके उद्देश्य में बदलाव देखने को मिलता है। यह बदलाव, जब सकारात्मक हो, तो व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाता है, लेकिन यदि नकारात्मक हो जाए, तो उसके प्रभाव उलटे हो सकते हैं।

स्टेज और जिम्मेदारी का उद्देश्य
सत्संग की स्टेज पर बैठने का अवसर सतगुरु की कृपा से मिलता है। यह जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सेवा का अवसर है। सत्संग में विचार प्रस्तुत करना, सतगुरु की शिक्षाओं को अन्य महापुरुषों तक पहुँचाना, और उनकी बातों को प्रचारित करना, एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। लेकिन यदि यह सेवा केवल अपनी उपस्थिति या प्रतिष्ठा के लिए की जाए, तो इसका उद्देश्य नष्ट हो जाता है।

नियमित सत्संग का महत्व
सत्संग केवल स्टेज पर बैठने तक सीमित नहीं है। सत्संग का असली उद्देश्य है आत्मा को निरंकार के साथ जोड़ना और अपने अहंकार को समाप्त करना। यदि कोई महापुरुष सत्संग में केवल अपनी स्टेज ड्यूटी के समय ही शामिल होते हैं, तो वह सत्संग के मूल उद्देश्य से दूर हो जाते हैं। सत्संग में नियमितता और निरंतरता आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है।

स्टेज का सेवा भाव से जुड़ाव
जो संत स्टेज पर बैठते हैं, उनका कर्तव्य है कि वे सेवा भाव को बनाए रखें। स्टेज पर बैठने का मतलब यह नहीं है कि वे श्रेष्ठ हैं, बल्कि इसका मतलब यह है कि उन्हें सतगुरु ने माध्यम बनाया है अपने विचारों को साझा करने का। लेकिन यदि यह भावना बदलकर 'मैं विशेष हूं' या 'मेरा महत्त्व अधिक है,' बन जाए, तो यह अहंकार का रूप ले लेता है।

समस्या का समाधान

1. आत्मावलोकन: संत महापुरुषों को समय-समय पर आत्मचिंतन करना चाहिए कि वे सत्संग में क्यों जा रहे हैं – क्या वह सेवा भाव से जा रहे हैं या केवल अपने पद के कारण।


2. नियमितता बनाए रखना: सत्संग में नियमित उपस्थिति यह सुनिश्चित करती है कि उनका संबंध सतगुरु से और अधिक मजबूत हो।


3. प्रेरणा देना: जो संत स्टेज पर विचार रखते हैं, उन्हें अपनी बातें इस तरह प्रस्तुत करनी चाहिए कि बाकी महापुरुष भी प्रेरित होकर सत्संग में नियमितता बनाए रखें।


4. सतगुरु की कृपा को समझना: यह समझना जरूरी है कि स्टेज पर बैठने का अवसर सतगुरु की कृपा है, इसे अहंकार का रूप नहीं देना चाहिए।


5. सेवा का महत्व: स्टेज पर बैठना सेवा का माध्यम है, न कि पहचान का। इसे विनम्रता से अपनाना चाहिए।



निष्कर्ष:
सत्संग में जाना केवल स्टेज पर विचार रखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा को निरंकार से जोड़ने का साधन है। जो महापुरुष स्टेज पर बैठने के बाद सत्संग से दूरी बना लेते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि सत्संग उनके जीवन का आधार है। सेवा और सत्संग में निष्ठा और समर्पण बनाए रखना ही एक सच्चे भक्त का गुण है।

धन निरंकार जी।


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