अक्सर, हम सेवा, सिमरन और सत्संग के महत्व को समझते हुए, बाहरी गतिविधियों में इतने लीन हो जाते हैं कि अपने घर-परिवार को कहीं पीछे छोड़ देते हैं। खासकर, महिलाओं को यह महसूस होता है कि अधिक सत्संग करने से ही उनके परिवार की सभी परेशानियाँ दूर हो जाएंगी। वे सोचती हैं कि सत्संग जाने से पति की नाराज़गी ठीक हो जाएगी, बच्चों की पढ़ाई सुधर जाएगी, और घर में सुख-शांति आ जाएगी। लेकिन क्या यह सही तरीका है?
ज़रूरी है कि हम सेवा, सिमरन और सत्संग को अपने घर से शुरू करें। हमारा परिवार ही हमारा पहला सत्संग है, हमारी पहली सेवा है।
घर से शुरुआत:
बच्चों पर ध्यान: अपने बच्चों के साथ समय बिताएं, उनकी पढ़ाई में मदद करें, उनकी बातों को सुनें और उन्हें सही मार्गदर्शन दें। यही सच्ची सेवा है।
पति का सम्मान: अपने पति के साथ प्रेम और सम्मान से व्यवहार करें, उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखें और घर के कामों में उनका साथ दें। यही सच्चा सिमरन है।
माता-पिता का आदर: अपने माता-पिता की सेवा करें, उनकी देखभाल करें और उनसे प्यार से बात करें। यही सच्चा सत्संग है।
जब हम अपने परिवार की देखभाल करते हैं, तो हमें एक अलग तरह की खुशी और संतुष्टि मिलती है। यह खुशी हमें सत्संग में भी मिलती है, लेकिन यह घर से शुरू होती है। जब हमारा घर खुशहाल होगा, तो हम बाहर भी खुशी फैला सकते हैं।
संत निरंकारी मिशन के सिद्धांतों को घर में अपनाना:
संत निरंकारी मिशन हमें सिखाता है कि हर इंसान में परमात्मा का वास है। जब हम अपने परिवार के सदस्यों को प्यार और सम्मान देते हैं, तो हम परमात्मा की ही सेवा कर रहे होते हैं।
बाहरी सत्संग का आनंद:
बाहरी सत्संग में जाना भी ज़रूरी है, क्योंकि इससे हमें ज्ञान मिलता है और दूसरों से प्रेरणा मिलती है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी पहली ज़िम्मेदारी अपने परिवार के प्रति है। जब हम घर से शुरुआत करते हैं, तो हम बाहरी सत्संग का भी पूरा आनंद ले पाते हैं।
निष्कर्ष:
सेवा, सिमरन और सत्संग का महत्व अपनी जगह है, लेकिन इसे केवल बाहरी गतिविधियों तक सीमित न रखें। इसे अपने घर से शुरू करें और अपने परिवार को खुशहाल बनाएं। जब हम अपने परिवार के साथ खुश रहेंगे, तो हम बाहर भी खुशियाँ फैला सकेंगे। यही सच्चा सत्संग है, यही सच्ची सेवा है, और यही सच्चा सिमरन है।
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