"महापुरुषों जी कितना सुंदर कहा है, कि जो भी संसार में यह कहता है कि उसने निरंकार प्रभु के दर्शन किए हैं और हर जर्रे जर्रे में उसे देखता है, लेकिन यदि वही व्यक्ति किसी की निंदा करता हुआ पाया जाता है या किसी की बुराई में लिप्त होता है, तो हमें यह समझना चाहिए कि उसने वास्तव में निरंकार को देखा ही नहीं। वह केवल खुद को भ्रमित कर रहा है और दूसरों को भी उसी भ्रम में डाल रहा है।
यदि कोई व्यक्ति संतों या महापुरुषों का पैसा चुराता है, भ्रष्टाचार में लिप्त है, तो उसका निरंकार से कोई संबंध नहीं हो सकता। क्योंकि अगर वह सच में निरंकार के दर्शन करता, तो उसे हमेशा निरंकार का डर होता। और अगर यह डर निरंकार का नहीं है, तो वह कभी भी सच्चा निरंकारी नहीं बन सकता।
इस संसार में अगर कोई कहता है कि उसने प्रभु परमात्मा को देख लिया है, परंतु संतों के प्रति अभद्र व्यवहार रखता है या महापुरुषों के धन का दुरुपयोग करता है, तो यह निश्चित है कि उसने निरंकार के दर्शन कभी नहीं किए। वह केवल अपने आप को ज्ञानवान बताने की कोशिश कर रहा है, परंतु असल में वह खुद भ्रमित है।
एक सच्चे निरंकारी को हर जर्रे में निरंकार दिखना चाहिए। उसे इस बात का एहसास होना चाहिए कि निरंकार उसे हर पल देख रहा है। अगर वह सच में निरंकार को देख चुका होता, तो उसे कभी किसी के प्रति ऊंच-नीच का भाव नहीं होता। जो व्यक्ति ऊंचे शब्दों में अपने आपको महापुरुषों के बीच ऊंचा प्रदर्शित करने की कोशिश करता है, वह असल में निरंकारी नहीं हो सकता।
सच्चा निरंकारी वही है जो अपने विचारों में, कर्मों में, और व्यवहार में हर जगह निरंकार को देखता है। उसे निरंकार का डर और सम्मान हर पल होना चाहिए। तभी वह सच्चे अर्थों में एक निरंकारी बन सकता है।"
"मेरे सतगुरु आपकी कृपा से, हर इंसान को हर पल निरंकार का एहसास हो और वह सच्चा निरंकारी बनने की ओर अग्रसर हो। धन निरंकार जी।"