प्यार से बोलना – "धन निरंकार जी"!
रविवार की सत्संग का विशेष महत्व है, और इसे पूरे संसार में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में देखा जाता है। रविवार को सत्संग का आयोजन बड़े स्तर पर होता है, और यह दिन महापुरुषों, युवाओं और बच्चों के लिए भी विशेष रूप से अनुकूल होता है। इस दिन की महत्ता का मुख्य कारण यह है कि रविवार को अधिकतर लोगों की छुट्टी होती है, जिससे वे अपने व्यस्त जीवन से कुछ समय निकालकर सत्संग में सम्मिलित हो सकते हैं और सतगुरु के ज्ञान और उपदेशों का लाभ उठा सकते हैं।
रविवार की सत्संग का एक बड़ा लाभ यह है कि इस दिन हर आयु वर्ग के लोग—बच्चे, युवा, और बड़े—सत्संग में शामिल हो पाते हैं। बच्चों के स्कूल की छुट्टी होने के कारण वे परिवार के साथ सत्संग का आनंद ले सकते हैं, वहीं युवा भी इस दिन अधिक समय देकर सत्संग में भागीदारी कर सकते हैं। इससे युवाओं में सत्संग के प्रति रुचि बढ़ती है और वे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।
सतगुरु का आदेश भी यही है कि रविवार को हर जगह सत्संग का आयोजन हो, ताकि सभी महापुरुष और संत इस सत्संग में उपस्थित होकर सतगुरु के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें। सत्संग का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उत्थान नहीं, बल्कि पूरे समाज में एक सकारात्मक और आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करना है। जब महापुरुष एक साथ सत्संग में भाग लेते हैं, तो वह संगत एक अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति और आनंद का केंद्र बन जाती है।
रविवार की सत्संग का एक और महत्व यह भी है कि यह दिन पूरी तरह से सत्संग और सेवा के लिए समर्पित किया जा सकता है। महापुरुष इस दिन अपने मन और शरीर को सत्संग में लगा पाते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ सतगुरु के आदेशों को सुनने और समझने का प्रयास करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, उनके जीवन में शांति, संतोष, और आनंद का अनुभव होता है, जो सप्ताह भर उन्हें प्रेरित और ऊर्जावान बनाए रखता है।
इसलिए, हमें सत्संग के इस विशेष दिन—रविवार—को सकारात्मक रूप से बढ़ावा देना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोग सत्संग का लाभ उठा सकें और सतगुरु के आदेशों के प्रति समर्पित रह सकें। यह दिन न केवल आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में प्रेम, सेवा, और एकता का संदेश भी फैलाता है।