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तू ही निरंकार (104)
सेवा सत्संग और सुमिरन से जो कुछ पुण्य कमाता तू।
निंदा और नफ़रत में फंसकर उससे अधिक गंवाता तू।
जितना नहीं कमाया उससे ज्यादा तूने खोया है।
इसीलिए तो कदम कदम पर पछताना हो रोया है।
नाम का तूने धन जो कमाया अगर सम्भाल न पायोगा।
जब सोच ले इस जीवन का क्या आनंद उठायोगा।
निंदा नफ़रत से गर बचे रहता दूर खुदा है।
कहें हरदेव कि प्रभु कृपा से हो सकता भरपूर है।
बाबा हरदेव सिंह जी महाराज द्वारा रचित यह अनमोल पद, मानव जीवन के सार को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रकट करता है। आइए, हम इस अनमोल पद की पंक्ति दर पंक्ति व्याख्या करते हुए इसके सार को समझने का प्रयास करते हैं:
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सेवा सत्संग और सुमिरण से जो कुछ पुण्य कमाता तू। इस पंक्ति में बाबा जी सेवा, सत्संग और सुमिरण को पुण्य कमाने का साधन बता रहे हैं। यानी जब हम दूसरों की सेवा करते हैं, सत्संग में जाते हैं और भगवान का नाम जपते हैं, तो हमारे कर्म शुद्ध होते हैं और हम पुण्य कमाते हैं।
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निंदा और नफ़रत में फंसकर उससे अधिक गंवाता तू। इस पंक्ति में बाबा जी निंदा और नफरत के दुष्परिणामों की ओर इशारा कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि जब हम किसी की निंदा करते हैं या किसी से नफरत करते हैं, तो हम जो पुण्य कमाते हैं, उससे कहीं अधिक पुण्य हम खो देते हैं।
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जितना नहीं कमाया उससे ज्यादा तूने खोया है। इस पंक्ति में बाबा जी इस बात को स्पष्ट कर रहे हैं कि निंदा और नफरत के कारण हम जो पुण्य खो देते हैं, वह हमारे द्वारा कमाए गए पुण्य से कहीं अधिक होता है।
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इसीलिये तो क़दम कदम पर पछताया है रोया है। इस पंक्ति में बाबा जी बता रहे हैं कि जब हम निंदा और नफरत के मार्ग पर चलते हैं, तो हमें पछतावा होता है और हम रोते हैं।
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नाम का तूने धन जो कमाया अगर संभाल न पायेगा। इस पंक्ति में बाबा जी भगवान के नाम जपने को धन से जोड़ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि भगवान का नाम जपकर हम जो धन कमाते हैं, अगर हम उसे संभाल नहीं पाते हैं, तो इसका कोई मतलब नहीं है।
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जरा सोच ले इस जीवन का क्या आनंद उठायेगा। इस पंक्ति में बाबा जी हमें सोचने के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि अगर हम भगवान के नाम को नहीं संभाल पाएंगे, तो हम इस जीवन का आनंद कैसे उठा पाएंगे।
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निंदा नपफ़रत से गर बन्दे रहता दूर दूर है। इस पंक्ति में बाबा जी निंदा और नफरत से दूर रहने का महत्व बता रहे हैं।
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कहे 'हरदेव' कि प्रभु कृपा से हो सकता भरपूर है। इस पंक्ति में बाबा जी कहते हैं कि अगर हम निंदा और नफरत से दूर रहते हैं, तो भगवान की कृपा हम पर बनी रहेगी।
अनमोल पद का सार
इस अनमोल पद का सार यह है कि हमें सेवा, सत्संग और सुमिरण में लगे रहना चाहिए। निंदा और नफरत से दूर रहकर ही हम सच्चा सुख पा सकते हैं। भगवान के नाम जपने को धन से जोड़ते हुए बाबा जी ने यह भी कहा है कि हमें इस धन को संभालना चाहिए।
निष्कर्ष
बाबा हरदेव सिंह जी महाराज का यह अनमोल पद हमें जीवन जीने का एक सही मार्ग दिखाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें कैसे एक अच्छा इंसान बनना चाहिए और कैसे हम भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।