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सत्संग का इंचार्ज में सम्मान नहीं देता है इंचार्ज का मकसद केवल मेरा मान सम्मान होता है

 निरंकार प्रभु को जानने के बाद, ईश्वरीय शक्ति की पहचान हो जाने के बाद, और साक्षात प्रभु के दर्शन हो जाने के बाद भी, क्यों सत्संग में प्यार वाला माहौल नहीं बन पाता?

छोटे-छोटे मोहल्ले या गली मोहल्ले में होने वाले सत्संग में अक्सर देखा जाता है कि कुछ इंचार्ज और संगत के लोग आपस में ही भिड़ जाते हैं। इंचार्ज अपनी चलाते हैं और संगत के प्रभावित लोग अपनी। इसका परिणाम यह होता है कि संगत का माहौल खराब हो जाता है।

हमें समझना होगा कि सत्संग का असली उद्देश्य क्या है। सत्संग का उद्देश्य है, निरंकार प्रभु के बताए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सुंदर बनाना।

अगर हम अपने मान-सम्मान को बढ़ाने के चक्कर में, निरंकार प्रभु के प्रचार-प्रसार के मकसद को भूल जाते हैं, तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल है।

इंचार्ज बनाए गए लोग अपनी जिम्मेदारी को समझें, और स्वयं को सेवक मानें। उम्र का लिहाज रखें, बूढ़े बुजुर्गों के साथ आदर से पेश आएं। अगर कोई युवा इंचार्ज है, तो उसे विशेष ध्यान रखना चाहिए कि हर कोई अपने परिवार में एक प्रमुख होता है।

यदि संगत में कोई व्यक्ति किसी को निजी रूप से बुरा-भला कहता है, तो विवाद उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, इन विवादों को खत्म करें। संगत का आनंद लें और जीवन को सुंदर बनाएं।

आओ, हम सब मिलकर ऐसा प्रयास करें कि सत्संग का माहौल हमेशा प्रेम, नम्रता और समृद्धि से भरा हो।

इंचार्ज अपनी जिम्मेदारी को समझें और संगत के सभी सदस्य प्रेम और आदर से एक-दूसरे के साथ व्यवहार करें। यही है सच्ची संगत, यही है सही मार्ग।

निरंकार प्रभु की पहचान को हर व्यक्ति तक पहुंचाएं और प्रेम का माहौल बनाएं।

सभी को सत्संग का आनंद लेना चाहिए और जीवन को सुंदर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।"

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