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सत्संग में जाने वालों को क्या जन्माष्टमी माननी चाहिए क्या यह सत्य है या झूठ है

 

निरंकार प्रभु और जन्माष्टमी: एक विरोधाभास?




आजकल, निरंकार प्रभु के दर्शन कराने वाली कई संस्थाएं हैं। ये संस्थाएं हमें निरंकार, अनादि, अनंत परमात्मा के दर्शन कराती हैं। लेकिन, जब जन्माष्टमी आती है, तो कुछ सत्संगियों के मन में एक भ्रांति पैदा हो जाती है। वे मानते हैं कि निरंकार परमात्मा में विश्वास करने वाले को जन्माष्टमी नहीं मनानी चाहिए।

यह तर्क थोड़ा विरोधाभासी लगता है। क्यों? क्योंकि जिन सत्संगियों द्वारा हमें निरंकार प्रभु के दर्शन कराए जाते हैं, वे ही हमें बताते हैं कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को इसी निरंकार परमात्मा के दर्शन कराए थे। श्रीमद्भगवद्गीता में भी इस बात का उल्लेख मिलता है।

श्री कृष्ण: निरंकार प्रभु के दर्शन कराने वाले

श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। लेकिन, गीता में वे स्वयं को सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और निराकार बताते हैं। अर्जुन को विश्वरूप दर्शन देते हुए वे कहते हैं कि वे आदि और अंत हैं, न तो उनका कोई जन्म है और न ही कोई मृत्यु।

अगर हम गौर से देखें तो, निरंकार प्रभु के दर्शन कराने वाली सभी संस्थाएं, सीधे या परोक्ष रूप से, श्री कृष्ण के उपदेशों से ही प्रेरित हैं। फिर क्यों कुछ लोग जन्माष्टमी मनाने का विरोध करते हैं?

जन्माष्टमी का महत्व

जन्माष्टमी सिर्फ एक जन्मदिन नहीं है। यह उस दिन का जश्न है जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर अवतार लिया था। उन्होंने हमें धर्म, कर्म और योग का मार्ग दिखाया। उन्होंने हमें जीवन का सच्चा अर्थ बताया।

जन्माष्टमी हमें यह याद दिलाती है कि भगवान हमारे भीतर ही निवास करते हैं। हमें बस उन्हें ढूंढना है। श्री कृष्ण ने हमें यह भी बताया कि भक्ति और सेवा ही भगवान को पाने का सबसे आसान मार्ग है।

एक नई सोच

आज हमें एक नई सोच विकसित करने की जरूरत है। हमें निरंकार प्रभु और अवतारों के बीच के संबंध को समझना होगा। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। निरंकार प्रभु सर्वव्यापी हैं, लेकिन उन्होंने हमारे कल्याण के लिए अवतार लिए।

हमें जन्माष्टमी को निरंकार प्रभु के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त करने का एक अवसर मानना चाहिए। साथ ही, हमें उन गुरुओं का भी सम्मान करना चाहिए जिन्होंने हमें निरंकार प्रभु के दर्शन कराए हैं।

निष्कर्ष

निरंकार प्रभु के दर्शन करने वाले सभी लोगों को जन्माष्टमी मनानी चाहिए। यह हमें सेवा, सुमिरन और सत्संग के महत्व को याद दिलाता है। हमें उन गुरुओं का भी सम्मान करना चाहिए जिन्होंने हमें इस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

आइए, इस जन्माष्टमी हम सभी मिलकर निरंकार प्रभु का आशीर्वाद लें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

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