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क्या यह कहा जाता है आपको "आपके काम तभी होंगे जब आप सत्संग में आएंगे" या "आपके काम नहीं हो रहे क्योंकि आप सत्संग में नहीं आ रहे।

 आज के समाज में सत्संग की व्यवस्था व्यापक रूप से फैली हुई है। हर छोटे से छोटे गली-मोहल्ले में सत्संग होते देखे जा सकते हैं। इन सत्संगों में अक्सर एक सतगुरु को बिठा दिया जाता है और उन्हें ही परमात्मा, ईश्वर, या भगवान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। जबकि, अगर हम भगवान श्री राम के जीवन पर नजर डालें, तो वे वशिष्ठ जी से ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने सांसारिक कार्यों में लगे रहते थे और अपने जीवन को सुंदर बनाते थे।

श्री राम ने ज्ञान प्राप्त किया और इसके बाद अपने कर्मों को पूर्ण करने में लगे रहे, जिससे वे सफलता प्राप्त करते रहे। इसके विपरीत, आज के सत्संग यह दावा करते हैं कि वे आपको निरंकार प्रभु के दर्शन कराएंगे और आपके सभी कार्यों को सफल बना देंगे। अक्सर नए-नए तरीकों से लोगों को सत्संग में बुलाने की कोशिश की जाती है, जैसे कि "आपके काम तभी होंगे जब आप सत्संग में आएंगे" या "आपके काम नहीं हो रहे क्योंकि आप सत्संग में नहीं आ रहे।"

यह समझना महत्वपूर्ण है कि भगवान श्री राम ने ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने कर्मों को नहीं छोड़ा। वे अपने
सांसारिक कार्यों को करते रहे और इसी दौरान उन्होंने अपने जीवन को सफल बनाया। यह संदेश स्पष्ट करता है कि सत्संग में जाकर ज्ञान प्राप्त करना महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन उसके बाद अपने दैनिक कार्यों को करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

किसी भी बंधन में बंधने की आवश्यकता नहीं है कि आपको सत्संग में ही जाना है। सत्य की प्राप्ति के बाद, आप अपने जीवन के कार्यों को करते हुए भी प्रभु को याद कर सकते हैं। इस प्रकार की विडंबना को समाप्त करना आवश्यक है, जो यह कहती है कि आपके सभी कार्य तभी सफल होंगे जब आप सत्संग में आएंगे।

सत्संग का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है, और ज्ञान प्राप्त करने के बाद, जीवन के सभी कार्यों को संतुलित ढंग से निभाना महत्वपूर्ण है। इस समझ को समाज में फैलाना आवश्यक है ताकि लोग सत्संग का सही अर्थ समझ सकें और अपने जीवन को संतुलित ढंग से जी सकें।

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