"आज के समय में सत्संगों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। हर गली-मोहल्ले में सत्संग होते देखे जा सकते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन सत्संगों में जो कुछ सिखाया जाता है, वो कितना सच है?
अक्सर सत्संगों में एक डरावनी कहानी सुनाई जाती है। ये कहा जाता है कि अगर आपने निरंकार प्रभु को नहीं जाना तो आपको
84 लाख योनियों का भोगना पड़ेगा। इस तरह के डर को दिखाकर लोगों को सत्संग में आने के लिए मजबूर किया जाता है।
लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है जो कह सके कि वो 84 लाख योनियों से गुजर कर आया है? नहीं ना! ये सिर्फ एक डर है, जिसका इस्तेमाल लोगों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
जब हम मंदिर जाते हैं तो हमें ऐसा कोई डर नहीं दिखाया जाता। हम प्रार्थना करते हैं और शांति से वापस आ जाते हैं। लेकिन सत्संगों में ऐसा क्यों होता है?
इसके पीछे एक बड़ा कारण आर्थिक लाभ भी है। कई सत्संगों में लोगों से दान मांगा जाता है। और इस डर को दिखाकर लोगों को दान देने के लिए मजबूर किया जाता है।
सवाल ये उठता है कि जब सत्संग का उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान देना और जीवन को बेहतर बनाना होना चाहिए, तो फिर डर का सहारा क्यों लिया जाता है?
कुछ सत्संग नेता ये दावा करते हैं कि वो आपको निरंकार प्रभु के दर्शन करा देंगे। लेकिन जो स्वयं ईर्ष्या, नफरत और जातिवाद में फंसा हुआ है, वो कैसे किसी को परमात्मा के दर्शन करा सकता है?
यह समय है कि हम इस तरह के भय और अंधविश्वासों से मुक्त हो जाएं। सच्चा धर्म कभी किसी को डराता नहीं है। धर्म का उद्देश्य हमें शांति, संतुलन और ज्ञान देना है।
आइए हम सत्संगों को सही अर्थ में समझें और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनका उपयोग करें।"