सत्संग सेवा का मर्म: अनुभव का सम्मान और नए का स्वागत सही ढंग से
सत्संग का वातावरण प्रेम, शांति और निस्वार्थ सेवा का होता है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ हम स्वयं को समर्पित कर, एक दूसरे के सहयोगी बनकर, गुरु की कृपा और परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करते हैं। यहाँ की हर सेवा एक पवित्र कार्य है, एक अवसर है अपने अहंकार को मिटाने और विनम्रता सीखने का। अनेक समर्पित आत्माएं वर्षों से, चुपचाप, बिना किसी पहचान की चाहत के, सत्संग की विभिन्न सेवाओं में लगी हुई हैं। उनका समर्पण प्रेरणादायक है, और उनकी सेवा सत्संग के संचालन में आधार स्तंभ का काम करती है।
समस्या का विरोधाभास:
लेकिन कई बार, इसी पवित्र वातावरण में एक अजीब सा विरोधाभास देखने को मिलता है। हम देखते हैं कि वर्षों से पूरी निष्ठा और दक्षता के साथ सेवा कर रहे समर्पित सेवकों को हटाने या बदलने के प्रयास किए जाते हैं। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि ये सेवक किसी भी तरह की अनुशासनहीनता या कर्तव्य में कोताही नहीं बरत रहे होते। उनकी सेवा सुचारू रूप से चल रही होती है।
फिर भी, कुछ लोगों के मन में यह विचार आता है कि 'बदलाव' लाना है, या 'नए लोगों को मौका देना है', और इस प्रक्रिया में वे अनुभवी सेवकों को हटाने की सोच रखते हैं। उन्हें लगता है कि शायद इससे कुछ 'बेहतर' होगा।
कारण की पड़ताल: कहीं यह 'मैं' तो नहीं?
इस सोच के पीछे का असली कारण क्या हो सकता है? जैसा कि आपने ठीक ही इंगित किया, इसका कारण सेवा या सत्संग के हित से जुड़ा कम, और कहीं न कहीं व्यक्तिगत मान-सम्मान, नियंत्रण की चाहत, या यह साबित करने की भावना से जुड़ा ज्यादा लगता है कि 'हम भी कुछ कर सकते हैं', भले ही उसके लिए किसी स्थापित और सुचारू व्यवस्था को ही क्यों न बिगाड़ना पड़े।
विडंबना यह है कि जो सच्चा सेवक होता है, उसे मान-सम्मान या पद से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह तो बस सेवा में आनंद ढूंढता है। उसके लिए सेवा स्वयं में पुरस्कार है। कई सेवक तो ऐसे परिवारों से आते हैं जहाँ पीढ़ियों से सत्संग सेवा की जा रही है। यह उनके लिए संस्कार है, जीवन का अभिन्न अंग है। वे चुपचाप अपना कार्य करते रहते हैं, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं। बावजूद इसके, जब कोई उन्हें हटाने की सोचता है, तो यह उन सेवकों के प्रति नहीं, बल्कि स्वयं सेवा के प्रति एक प्रकार का अनादर है।
सही मार्ग: अनुभव का सम्मान और सहयोग
परिवर्तन प्रकृति का नियम है, और नए लोगों को सेवा का मौका मिलना भी चाहिए। यह सत्संग के विस्तार और भविष्य के लिए आवश्यक है। लेकिन यह मौका किसी को हटाकर नहीं, बल्कि जोड़कर दिया जाना चाहिए।
वास्तव में, परिवर्तन लाने और नए लोगों को तैयार करने का सबसे प्रभावी और सत्संगपूर्ण तरीका यह है कि नए लोगों को अनुभवी सेवकों के साथ जोड़ा जाए। उन्हें उन अनुभवी हाथों के नीचे सेवा सीखने का अवसर मिले, जिन्होंने वर्षों तक इस सेवा को जिया है।
जब कोई नया सेवक किसी पुराने, अनुभवी सेवक के साथ लगता है, तो वह केवल कार्य की बारीकियां ही नहीं सीखता, बल्कि सेवा का सही भाव, विनम्रता, धैर्य और समर्पण का महत्व भी सीखता है। यह अनुभव का सम्मान है, यह ज्ञान का हस्तांतरण है, यह संबंधों को मजबूत करना है।
सोचिए, अगर हटाने की बजाय, यह विचार किया जाए कि 'आइए, हम इनके साथ लगकर सीखें कि ये इतनी अच्छी सेवा कैसे करते हैं', तो कितना सकारात्मक परिवर्तन आ सकता है! नए लोग तैयार भी होंगे और अनुभवी सेवकों को भी लगेगा कि उनके अनुभव का महत्व समझा जा रहा है। यह सामंजस्य का वातावरण बनाएगा, न कि विरोधाभास का।
सत्संग का वातावरण सबसे महत्वपूर्ण:
सत्संग की शक्ति उसकी एकता, प्रेम और सामंजस्य में निहित है। जब व्यक्तिगत अहंकार या किसी को हटाने की सोच इस वातावरण में प्रवेश करती है, तो यह सत्संग के मूल उद्देश्य को ही चोट पहुँचाती है। सेवा एक पवित्र यज्ञ है, और इसे बिना किसी 'मैं', 'मेरा', या 'इसको हटा दो' के भाव के करना चाहिए।
जिन्हें सेवा का अवसर नहीं मिला है, उनकी लगन सराहनीय है, और उन्हें मौका अवश्य मिलना चाहिए। लेकिन यह मौका छीनकर नहीं, बांटकर और सिखाकर दिया जाना चाहिए। अनुभवी सेवक खजाना हैं, उन्हें किनारे लगाने की बजाय, उनसे सीखना चाहिए।
एक भावनात्मक अपील:
जो लोग इस तरह के विचारों से प्रभावित हैं कि किसी पुराने सेवक को हटाकर ही बदलाव लाया जा सकता है, उनसे यह विनम्र निवेदन है कि वे इस सोच पर पुनर्विचार करें। सेवा एक पद नहीं है जिस पर बैठे व्यक्ति को कार्यकाल पूरा होने पर हटा दिया जाए। सेवा तो एक भाव है, एक निष्ठा है।
अगर आप सेवा करना चाहते हैं, तो आगे बढ़ें, लेकिन हटाने की सोच के साथ नहीं, सीखने की जिज्ञासा और सहयोग की भावना के साथ। उन अनुभवी सेवकों के पास बैठें, उनसे मार्गदर्शन लें। उनसे सीखें कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराते हुए सेवा की जाती है। यही सच्चा बदलाव लाएगा - आपके भीतर भी और सत्संग के वातावरण में भी।
सत्संग का वातावरण प्रेम, सम्मान और सहयोग से बना रहे। सेवा सभी के लिए खुली है, लेकिन द्वेष या प्रतिस्पर्धा से नहीं, बल्कि भक्ति और विनम्रता से। आइए, मिलकर सत्संग सेवा के सच्चे मर्म को समझें और उसे जिएं।