सत्संग में पदवी की लालसा रखने वाले संत महापुरुष अपनी आत्मिक शांति को भंग कर लेते हैं। सद्गुरु के आदेशों को सुनने के बजाय, वे सद्गुरु की स्टेज पर नजर रखते हैं, जिससे उन्हें हमेशा दुखों का सामना करना पड़ता है।
सत्संग का उद्देश्य आत्मिक उन्नति और शांति प्राप्त करना है, लेकिन जब संत महापुरुष पदवी की चाह में लिप्त हो जाते हैं, तो उनका ध्यान भटक जाता है। सद्गुरु के आदेशों की अवहेलना करने से वे अपने आध्यात्मिक मार्ग से दूर हो जाते हैं और उनके जीवन में कष्ट बढ़ते हैं। सद्गुरु की स्टेज पर नजर रखने से वे बाहरी दिखावे में उलझकर अपने आंतरिक विकास को नजरअंदाज करते हैं, जिससे उनकी आत्मिक शांति भंग होती है और वे दुखों का सामना करते रहते हैं।
इसलिए, संत महापुरुषों को चाहिए कि वे पदवी की लालसा छोड़कर सद्गुरु के आदेशों का पालन करें और अपने आत्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें, ताकि वे सच्ची शांति और आनंद प्राप्त कर सकें।
सत्संग एक दर्पण है, जो हमारे आंतरिक विकारों को दर्शाता है और हमें आत्ममंथन का अवसर प्रदान करता है। सद्गुरु की शिक्षाएं हमें अहंकार, पदवी की लालसा और बाहरी दिखावे से ऊपर उठकर सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। यदि हम सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए विनम्रता और समर्पण के साथ सत्संग में भाग लें, तो हम अपने जीवन में सच्ची शांति और सुख का अनुभव कर सकते हैं।
सत्संग में पदवी के चक्कर में पड़ने वाले महात्मा प्रेरणादाई नहीं होते, क्योंकि वे स्वयं अपने अहंकार और लालसा में उलझे रहते हैं। सच्चे संत वही हैं, जो सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और विनम्रता के साथ जीवन व्यतीत करते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं।
इसलिए, हमें सत्संग में भाग लेते समय अपने मन को शुद्ध रखना चाहिए, पदवी की लालसा से दूर रहना चाहिए और सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होना चाहिए। यह मार्ग ही हमें सच्ची शांति और आनंद की प्राप्ति कराएगा।
सत्संग एक दर्पण है, जो हमारे आंतरिक विकारों को दर्शाता है और हमें आत्ममंथन का अवसर प्रदान करता है। सद्गुरु की शिक्षाएं हमें अहंकार, पदवी की लालसा और बाहरी दिखावे से ऊपर उठकर सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। यदि हम सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए विनम्रता और समर्पण के साथ सत्संग में भाग लें, तो हम अपने जीवन में सच्ची शांति और सुख का अनुभव कर सकते हैं।
सत्संग में पदवी के चक्कर में पड़ने वाले महात्मा प्रेरणादाई नहीं होते, क्योंकि वे स्वयं अपने अहंकार और लालसा में उलझे रहते हैं। सच्चे संत वही हैं, जो सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और विनम्रता के साथ जीवन व्यतीत करते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं।
इसलिए, हमें सत्संग में भाग लेते समय अपने मन को शुद्ध रखना चाहिए, पदवी की लालसा से दूर रहना चाहिए और सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होना चाहिए। यह मार्ग ही हमें सच्ची शांति और आनंद की प्राप्ति कराएगा।
सत्संग एक दर्पण है, जो हमारे आंतरिक विकारों को दर्शाता है और हमें आत्ममंथन का अवसर प्रदान करता है। सद्गुरु की शिक्षाएं हमें अहंकार, पदवी की लालसा और बाहरी दिखावे से ऊपर उठकर सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। यदि हम सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए विनम्रता और समर्पण के साथ सत्संग में भाग लें, तो हम अपने जीवन में सच्ची शांति और सुख का अनुभव कर सकते हैं।
सत्संग में पदवी के चक्कर में पड़ने वाले महात्मा प्रेरणादाई नहीं होते, क्योंकि वे स्वयं अपने अहंकार और लालसा में उलझे रहते हैं। सच्चे संत वही हैं, जो सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और विनम्रता के साथ जीवन व्यतीत करते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं।
इसलिए, हमें सत्संग में भाग लेते समय अपने मन को शुद्ध रखना चाहिए, पदवी की लालसा से दूर रहना चाहिए और सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होना चाहिए। यह मार्ग ही हमें सच्ची शांति और आनंद की प्राप्ति कराएगा।
सत्संग एक दर्पण है, जो हमारे आंतरिक विकारों को दर्शाता है और हमें आत्ममंथन का अवसर प्रदान करता है। सद्गुरु की शिक्षाएं हमें अहंकार, पदवी की लालसा और बाहरी दिखावे से ऊपर उठकर सच्चे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। यदि हम सद्गुरु के आदेशों का पालन करते हुए विनम्रता और समर्पण के साथ सत्संग में भाग लें, तो हम अपने जीवन में सच्ची शांति और सुख का अनुभव कर सकते हैं।