जब हम सत्संग में आते हैं और इस निरंकार प्रभु को पहचानते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर के सान्निध्य में न कोई अमीर रहता है, न कोई गरीब। वहां केवल आत्मा का सौंदर्य और उसके द्वारा प्राप्त ज्ञान का प्रकाश होता है। लेकिन जब इस सत्य को जानने के बावजूद कोई अमीर अपने धन और भौतिक संपन्नता के कारण गरीब या साधारण साधकों के प्रति भेदभाव करता है, तो वह न केवल अपनी आध्यात्मिक यात्रा को रोकता है बल्कि अपने जीवन को भी दुःख और असंतोष की ओर ले जाता है।
भेदभाव का परिणाम
1. सत्संग की पवित्रता को ठेस:
सत्संग वह स्थान है जहां भेदभाव की कोई जगह नहीं होती। अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच जैसे भेदों को मिटाने के लिए ही सत्संग का आयोजन होता है।
अगर कोई अमीर संत दूसरों के प्रति भेदभाव करता है, तो वह सत्संग की भावना को चोट पहुंचाता है।
2. आध्यात्मिक प्रगति में रुकावट:
ईश्वर सबका है, और उसकी दृष्टि में हर इंसान समान है। जो इंसान किसी को उसके कपड़ों या आर्थिक स्थिति के आधार पर नीचा समझता है, वह इस ईश्वरीय समानता के सिद्धांत को समझ नहीं पाता।
ऐसा व्यक्ति कभी भी परमात्मा के वास्तविक ज्ञान को अनुभव नहीं कर सकता।
3. अहंकार का कारण:
भौतिक संपत्ति का अभिमान केवल अस्थायी सुख देता है। यह अहंकार ईश्वर से दूरी का कारण बनता है।
ऐसा व्यक्ति अपने आसपास केवल नकारात्मकता ही फैलाता है और दूसरों के दिलों में कड़वाहट उत्पन्न करता है।
संदेश उन संतों के लिए जो भेदभाव करते हैं
1. ईश्वर के सामने सब समान हैं:
निरंकार प्रभु को पहचानने के बाद किसी भी प्रकार का भेदभाव अस्वीकार्य है। अगर कोई ऐसा करता है, तो वह इस ज्ञान का अपमान करता है।
सतगुरु की शिक्षा है कि हर इंसान में निरंकार का वास है। अगर हम किसी को नीचा समझते हैं, तो हम ईश्वर का अपमान कर रहे हैं।
2. धन से नहीं, भावना से मूल्यांकन करें:
सत्संग में धन का कोई महत्व नहीं है। वहां केवल सेवा, सुमिरन, और सच्चे भावों का मूल्य है।
जो इंसान दूसरों की आर्थिक स्थिति को देखकर उनका सम्मान या अपमान करता है, वह वास्तव में अपनी आत्मा को छोटा कर रहा है।
3. संपन्नता का सही उपयोग:
अगर आपको संपन्नता मिली है, तो उसे दिखावे या भेदभाव के लिए नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की मदद के लिए उपयोग करें।
सेवा में लगाया गया धन आपको ईश्वर के और करीब लाता है।
आत्मचिंतन और चेतावनी
1. अहंकार से बचें:
भौतिक सुखों और संपत्ति का अभिमान आपके आध्यात्मिक विकास को रोक सकता है।
भेदभाव और अहंकार से भरे व्यक्ति का अंत सुखद नहीं होता।
2. सच्चे सत्संगी बनें:
सच्चा संत वही है जो हर इंसान में निरंकार का अनुभव करे। दूसरों को उनके कपड़ों या आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं, बल्कि उनके गुणों और भावनाओं के आधार पर देखे।
3. भविष्य के लिए चेतावनी:
जो व्यक्ति सत्संग में भेदभाव करता है, वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा में पीछे रह जाता है। ऐसे व्यक्ति का अंत दुःखद और असंतोषपूर्ण हो सकता है।
केवल धन से जीवन सुखदाई नहीं बनता; सच्चा सुख सेवा, समानता, और प्रेम में है।
निष्कर्ष
सत्संग में भेदभाव की कोई जगह नहीं है। अमीर और गरीब का अंतर केवल हमारे माया के पर्दे में है। इस पर्दे को हटाकर अगर हम हर इंसान को समान रूप से देखें और उनके प्रति सम्मान और प्रेम रखें, तो हमारा जीवन भी सुखदाई होगा और हमारी आत्मा भी शुद्ध होगी।
धन निरंकार जी।