महापुरुषों ने कितना सुंदर कहा है कि आपसी मतभेद को मिटाए बिना किसी भी सामूहिक प्रयास को साकार करना कठिन है। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की शिक्षा के अनुसार, हमें अपने अहंकार और मान-सम्मान की लालसा को त्यागकर निरंकार प्रभु की शिक्षाओं का पालन करना चाहिए।
आपसी मतभेद के कारण
1. अहंकार और व्यक्तिगत मान-सम्मान की चाह:
जब व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा और महत्व को प्राथमिकता देता है, तो मतभेद उत्पन्न होते हैं। लोग अपने विचारों को सर्वोपरि मानते हैं और दूसरों की भावनाओं को समझने का प्रयास नहीं करते।
2. अधूरी समझ और संवाद की कमी:
विचारों का टकराव अक्सर इसलिए होता है क्योंकि हम संवाद नहीं करते। हमें सामने वाले की बात को सुनने और समझने की आदत डालनी होगी।
3. निरंकार से दूरी:
जब हमारा ध्यान निरंकार प्रभु से हटकर सांसारिक बातों में लग जाता है, तो हम अपने रिश्तों में कटुता को बढ़ावा देते हैं।
मतभेद दूर करने के उपाय
1. सहज स्वभाव और विनम्रता अपनाएं:
सतगुरु सिखाते हैं कि हमारा स्वभाव दूसरों को जोड़ने वाला होना चाहिए। अहंकार को छोड़कर, प्रेम और विनम्रता से संबंध बनाएं।
2. निरंकार को केंद्र में रखें:
जब भी कोई विवाद हो, निरंकार की याद करें और यह सोचें कि हमारा उद्देश्य क्या है। मिशन के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए मतभेदों को पीछे छोड़ना जरूरी है।
3. सेवा, सिमरन, और सत्संग में ध्यान केंद्रित करें:
सेवा का भाव व्यक्ति को निःस्वार्थ बनाता है। सिमरन और सत्संग हमें सही दिशा दिखाते हैं और आत्मा को शुद्ध करते हैं।
4. दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करें:
हर व्यक्ति की सोच अलग होती है। यदि हम उनकी बातों को महत्व देंगे, तो मतभेद की गुंजाइश कम होगी।
मिशन को असीम तक ले जाने की जिम्मेदारी
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की शिक्षाओं के आधार पर यह स्पष्ट है कि हमारा लक्ष्य निरंकार का संदेश हर घर तक पहुंचाना है। इसके लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे। यदि आपसी मतभेद बाधा बनें, तो यह मिशन कमजोर पड़ सकता है।
इसलिए, आइए हम सब मिलकर निरंकार प्रभु की आराधना करें, आपसी मतभेदों को मिटाएं और सतगुरु की शिक्षाओं का पालन करते हुए इस मिशन को आगे बढ़ाएं।
धन निरंकार जी।