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माया की उलझनें और सतगुरु की ओर बढ़ते कदम

 माया का खेल निरंतर इंसान को सतगुरु से दूर रखने का प्रयास करता है। जब भी जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की संभावना होती है, माया इंसान को उलझनों में फंसा देती है। यही कारण है कि जब सतगुरु की कृपा से सेवा और सत्संग का अवसर मिलता है, तो माया हमें रोकने की कोशिश करती है।

कई बार इंसान यह सोचता है कि वह सेवा में भाग ले और सतगुरु के आनंद का अनुभव करे, लेकिन उसके मन में माया का प्रभाव उसे रोक देता है। सतगुरु ने अपने प्रेम से हमेशा अपने भक्तों को सुख, शांति, और समृद्धि प्रदान की है, लेकिन मनुष्य माया के आकर्षण में उलझा रहता है और सतगुरु की राह से दूर जाने की सोचता है।

सतगुरु हमें केवल यह याद दिलाते हैं कि सेवा, सुमिरन और सत्संग ही वह मार्ग हैं जो हमें आनंद की उच्च अवस्था में पहुंचाते हैं। इंसान भूल जाता है कि ये ही उसके जीवन की सच्ची पूंजी हैं। जब कठिनाइयाँ आती हैं, तब ही वह सतगुरु की शरण में भागता है और सेवा करने का संकल्प लेता है।

हमें यह आदत बनानी चाहिए कि जब भी सतगुरु बुलाएं, बिना विलंब किए उनकी शरण में पहुंचें। सेवा और सत्संग में नियमित भागीदारी से न केवल दुखों का अंत होता है, बल्कि जीवन में खुशियों की वृद्धि भी होती है।

आओ मिलकर सतगुरु माता जी के चरणों में हम अरदास करते हैं कि हम सब सेवा, सुमिरन, और सत्संग के मार्ग पर सदैव आगे बढ़ते रहें।

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