एक छोटे से गांव में रमेश नाम का एक युवक रहता था। वह धार्मिक प्रवृत्ति का था और अक्सर मंदिर जाता था। लेकिन, उसके मन में एक प्रश्न हमेशा बना रहता था, "निरंकार प्रभु कौन हैं?" वह कई धर्मग्रंथों का अध्ययन करता था लेकिन उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाता था।
एक दिन, वह एक सत्संग में गया। वहां, एक सतगुरु ने निरंकार प्रभु के बारे में इतनी गहराई से बताया कि रमेश का मन मोहित हो गया। उसे लगा कि उसे सच में मिल गया है जो वह ढूंढ रहा था। वह सत्संग में नियमित रूप से जाने लगा और निरंकार प्रभु के बारे में और अधिक जानने लगा।
सत्संग में, सभी भक्त इतने प्रेम और भक्ति से बातें करते थे कि रमेश को लगता था कि वह स्वर्ग में है। लेकिन, सत्संग खत्म होते ही कुछ भक्तों को एक-दूसरे की निंदा करते हुए देखकर वह बहुत दुखी होता था। उसे समझ नहीं आता था कि जो लोग इतने पवित्र विचार रखते हैं, वे कैसे दूसरों की बुराई कर सकते हैं।
रमेश ने देखा कि सत्संग में आए भक्तों के विचारों को सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे किसी स्वर्ग के अंदर बैठे हैं लेकिन जब सत्संग खत्म हो जाती है तब वही बड़े-बड़े विचार करने वाले व्यक्ति किसी न किसी संगत में आए महापुरुष की बुराई कर रहा होता है।
इस सब से परेशान होकर, रमेश ने मंदिर जाना शुरू कर दिया। अब जब वह मंदिर में जाता और भगवान के सामने हाथ जोड़कर बैठता तो वह उनकी साक्षात दर्शन कर रहा था। और दर्शन करने के बाद खुशी-खुशी अपने घर पहुंचता और आनंद से अपने कार्य में लग जाता।
तब उसे महसूस हुआ कि निरंकार प्रभु के दर्शन करने के बाद जब से वह मंदिर में जा रहा है तब से वह खुशियां ही खुशियां प्राप्त कर रहा है। क्योंकि उसने निरंकार प्रभु के दर्शन कर चुका है और अब वह किसी भी भ्रांति में नहीं है। केवल अपनी शांति और आत्मा को तृप्ति करने के लिए मंदिर में जा रहा है और वहां पर आनंद प्राप्त कर रहा है।
सीख
रमेश की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति व्यक्ति को अंदर से बदल देती है। जब हम ईश्वर के साथ जुड़ते हैं तो हमारी नकारात्मक भावनाएं जैसे कि ईर्ष्या, घृणा और क्रोध दूर हो जाते हैं। हम दूसरों को बिना किसी स्वार्थ के प्यार करने लगते हैं।
सत्संग में आने वाले सभी लोग ईश्वर के भक्त होते हैं, लेकिन सभी एक ही स्तर पर नहीं होते हैं। कुछ लोग अभी भी अपनी मानवीय कमजोरियों से ग्रस्त होते हैं। इसलिए, हमें दूसरों की गलतियों पर उंगली उठाने के बजाय, उन्हें प्यार और सहयोग देना चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने अंदर की शांति को खोजना है। जब हम अपनी आत्मा से जुड़ जाते हैं तो हमें किसी और की जरूरत नहीं होती। हम स्वयं ही अपने लिए एक मंदिर बन जाते हैं।
निष्कर्ष
रमेश की कहानी हमें यह बताती है कि सच्ची भक्ति का मार्ग अंदर की ओर जाता है। हमें बाहर की दुनिया में खुशी की तलाश करने के बजाय, अपने अंदर की शांति को खोजना चाहिए। जब हम ईश्वर के साथ जुड़ जाते हैं तो हमारी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है।
यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि:
- सत्संग हमें ईश्वर के करीब लाता है।
- ईश्वर का दर्शन करने से हमें आंतरिक शांति मिलती है।
- हमें दूसरों की गलतियों पर उंगली उठाने के बजाय, उन्हें प्यार और सहयोग देना चाहिए।
- हमें अपने अंदर की शांति को खोजना चाहिए।