अक्सर हम निरंकारी सत्संगों में सुनते हैं कि निरंकार से केवल सेवा, सुमिरन और सत्संग ही मांगना चाहिए। यह बात अपनी जगह बिल्कुल सही है, क्योंकि ये तीनों ही हमें आत्मिक उन्नति की ओर ले जाते हैं और निरंकार से हमारा संबंध गहरा करते हैं। लेकिन एक विचार यह भी आता है कि क्या हम निरंकार, जो एक परम शक्ति है और कण-कण में व्याप्त है, उससे अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद नहीं मांग सकते? क्या परिवार की जरूरतों को पूरा करने की इच्छा रखना गलत है, जब हम अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए भी उसी पर निर्भर हैं?
यह समझना महत्वपूर्ण है कि निरंकार एक सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान सत्ता है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जब हम उसके सामने अपनी कोई भी इच्छा रखते हैं, चाहे वह आध्यात्मिक हो या सांसारिक, तो वह हमारी अरदास को सुनता है। हमारी सकारात्मक इच्छाओं को पूरा करने के लिए वह ब्रह्मांड में ऐसे संयोग बनाता है, जिससे वे पूरी हो सकें। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह हमारे परिवार की सुख-समृद्धि, बच्चों की शिक्षा, घर-गृहस्थी की आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सक्षम है।
सेवा, सुमिरन और सत्संग का महत्व
निरंकारी मिशन में सेवा, सुमिरन और सत्संग को जीवन का आधार माना गया है।
- सेवा हमें विनम्र बनाती है और दूसरों के प्रति प्रेम का भाव जगाती है।
- सुमिरन हमें हर पल निरंकार की याद दिलाता है और मन को एकाग्र करता है।
- सत्संग हमें ज्ञान प्रदान करता है, संतों की संगति में रहकर हम अपने जीवन को सही दिशा देते हैं।
ये तीनों क्रियाएं हमें मानसिक शांति और आत्मिक आनंद प्रदान करती हैं, जो किसी भी सांसारिक सुख से बढ़कर है। यही कारण है कि सत्संग में हमेशा इन तीनों की ही मांग करने पर जोर दिया जाता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि निरंकार हमारी सांसारिक जरूरतों को पूरा नहीं करना चाहता, बल्कि यह है कि जब हम इन आध्यात्मिक मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं, तो सांसारिक आवश्यकताएं अपने आप ही पूरी होने लगती हैं।
सांसारिक और आध्यात्मिक इच्छाओं का संतुलन
सवाल यह उठता है कि यदि हम निरंतर सेवा, सुमिरन और सत्संग में लगे रहें, तो परिवार के लिए समय कब निकलेगा? बच्चों की स्कूल फीस, घर का किराया, और अन्य दैनिक खर्चे कहाँ से आएंगे? रिक्शे का किराया, जो हमें सत्संग तक ले जाता है, वह भी तो कहीं से आना चाहिए। यह एक व्यावहारिक प्रश्न है और इसका समाधान भी उतना ही व्यावहारिक होना चाहिए।
निरंकारी मिशन कभी भी अपने अनुयायियों को अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के लिए नहीं कहता। बल्कि, यह हमें सिखाता है कि गृहस्थ जीवन में रहकर भी हम निरंकार से जुड़ सकते हैं। परिवार की देखभाल करना, बच्चों को अच्छी शिक्षा देना, और अपनी आजीविका कमाना, ये सभी हमारे कर्तव्य हैं। इन कर्तव्यों का पालन करते हुए भी हम निरंकार का सुमिरन कर सकते हैं और सेवा में हिस्सा ले सकते हैं।
यह एक संतुलन बनाने की बात है। हम निरंकार से अपने परिवार के लिए आशीर्वाद मांग सकते हैं, बशर्ते हमारी इच्छाएं सकारात्मक हों और उनमें लोभ या स्वार्थ का भाव न हो। यदि हम अपने परिवार की सुख-समृद्धि इसलिए चाहते हैं ताकि हम स्वयं भी शांतिपूर्वक निरंकार का भजन कर सकें और सत्संग में जा सकें, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। निरंकार हमेशा हमारे कल्याण के लिए ही कार्य करता है।
अवचेतन मन और सकारात्मक सोच
जब हम निरंकार से अपनी सकारात्मक इच्छाएं रखते हैं, तो हम अपने अवचेतन मन (Subconscious Mind) को भी सकारात्मक संदेश देते हैं। हमारा अवचेतन मन ब्रह्मांड की ऊर्जा से जुड़ा होता है और वह हमारी सोच के अनुसार ही कार्य करता है। यदि हम विश्वास के साथ निरंकार से अपने परिवार की भलाई के लिए अरदास करते हैं, तो यह हमारे भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जो हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि निरंकार से केवल सेवा, सुमिरन और सत्संग मांगना आत्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लें या निरंकार से उनकी पूर्ति के लिए अरदास न करें। महत्वपूर्ण यह है कि हमारी इच्छाएं नेक हों, उनमें सबके कल्याण की भावना हो, और हम अपनी आवश्यकताओं के लिए पूर्णतः निरंकार पर विश्वास रखें। जब हम अपने कर्म करते हुए निरंकार पर भरोसा रखते हैं, तो वह हमारी सभी जरूरतों को पूरा करता है।
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