दृश्य: एक धुंधला, पथरीला रास्ता, जहाँ एक अकेला राहगीर, रमेश, लड़खड़ाता हुआ चल रहा है। उसके चेहरे पर निराशा और थकान साफ़ झलक रही है। उसके कंधे झुके हुए हैं और उसकी आँखें किसी सहारे की तलाश में भटक रही हैं। आसपास घना अंधेरा है, और रास्ते में कांटे और पत्थर उसकी यात्रा को और भी मुश्किल बना रहे हैं।
रमेश एक ऐसे दौर से गुजर रहा था जब उसके जीवन में हर तरफ निराशा छाई हुई थी। व्यापार में घाटा, परिवार में कलह और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया था। उसे हर तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था और उसे कोई राह नजर नहीं आ रही थी। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों के चक्कर लगाए, कई तरह के उपाय किए, लेकिन उसकी परेशानियां कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही थीं।
एक दिन, थक-हारकर वह एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया। उसकी आँखें नम थीं और उसे लग रहा था कि अब उसके जीवन में कोई उम्मीद बाकी नहीं बची है। तभी उसने दूर से एक मधुर आवाज़ सुनी। वह आवाज़ इतनी शांत और सुकून देने वाली थी कि रमेश अनायास ही उसकी ओर खिंचा चला गया।
आवाज एक छोटे से आश्रम से आ रही थी, जहाँ एक तेजस्वी सतगुरु अपने शिष्यों को संबोधित कर रहे थे। रमेश हिम्मत करके आश्रम के अंदर गया और एक कोने में बैठ गया। सतगुरु की वाणी में एक अद्भुत शक्ति थी। वे जीवन के गहरे रहस्यों को सरल शब्दों में समझा रहे थे और बता रहे थे कि कैसे सच्चे मार्गदर्शन और परमात्मा के प्रेम से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।
रमेश ने ध्यान से सतगुरु की बातों को सुना। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसके दिल की बात कह रहा हो। सतगुरु ने बताया कि जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, लेकिन जो व्यक्ति सच्चे गुरु का सहारा पकड़ लेता है, वह इन परिस्थितियों से विचलित नहीं होता और हमेशा आनंद में रहता है। उन्होंने समझाया कि असली खुशी बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि अपने भीतर छिपी हुई है, जिसे सतगुरु की कृपा से ही जगाया जा सकता है।
सतगुरु की वाणी सुनकर रमेश के मन में एक नई आशा का संचार हुआ। उसे पहली बार यह महसूस हुआ कि उसकी परेशानियों का भी कोई हल निकल सकता है। उसने सतगुरु के चरणों में गिरकर उनसे मार्गदर्शन मांगा। सतगुरु ने उसे प्रेम से उठाया और उसे नाम-दीक्षा दी। उन्होंने उसे ध्यान और सेवा का महत्व समझाया और उसे नियमित रूप से साधना करने के लिए प्रेरित किया।
रमेश ने सतगुरु के वचनों का पालन करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसके जीवन में बदलाव आने लगे। ध्यान करने से उसका मन शांत रहने लगा और उसे आंतरिक शांति का अनुभव होने लगा। सेवा करने से उसका अहंकार कम होने लगा और दूसरों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव जागृत हुआ।
आश्चर्यजनक रूप से, उसके व्यापार में भी सुधार होने लगा। पारिवारिक कलह कम हो गया और उसके स्वास्थ्य में भी धीरे-धीरे सुधार आने लगा। रमेश को यह एहसास हुआ कि सतगुरु का सहारा ही उसके जीवन में खुशहाली लेकर आया है। उन्होंने उसे सही राह दिखाई और उसे मुश्किलों से लड़ने की शक्ति प्रदान की।
अब रमेश का जीवन पूरी तरह से बदल चुका था। वह हमेशा खुश और संतुष्ट रहता था। उसने जान लिया था कि जीवन में चाहे कितनी भी परेशानियां आएं, अगर सतगुरु का सहारा हो तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। वह अब अकेला राहगीर नहीं था, बल्कि एक ऐसे यात्री की तरह था जिसका हाथ एक ऐसे मार्गदर्शक ने पकड़ा हुआ था जो उसे हमेशा सही रास्ते पर ले जाएगा। उसके चेहरे पर अब निराशा की जगह एक शांत और दिव्य मुस्कान हमेशा बनी रहती थी। वह जानता था कि सतगुरु का प्रेम और आशीर्वाद हमेशा उसके साथ है, और यही उसके जीवन की सबसे बड़ी दौलत है।