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किसी भी संत-महापुरुष की बुराई न करें सत्संग की माया इंसानों का मेहनत का पैसा है #satsangvichar

 

सत्संग का सही अर्थ: सेवा, सुमिरन और निर्मलता

सत्संग का महत्व तभी सार्थक होता है जब हम वहां सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी उपस्थित हों। यदि हम सत्संग में जाकर भी केवल संतों और महापुरुषों की बुराइयां देखने में व्यस्त रहते हैं, उनकी कमियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारा जीवन कभी भी सुंदर और सुखमय नहीं बन सकता। यह गांठ बांध लेने योग्य सत्य है कि केवल प्रसाद वितरण, सेवा, या सत्संग में उपस्थिति मात्र से जीवन में सच्चा आनंद और शांति प्राप्त नहीं होती।

सत्संग में सही दृष्टिकोण अपनाएं

सत्संग एक ऐसा पवित्र स्थान होता है जहां व्यक्ति अपने अहंकार, क्रोध, लोभ और ईर्ष्या को छोड़कर परमात्मा के रंग में रंगने आता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति यहां भी नकारात्मकता फैलाता है, दूसरों की गलतियां ढूंढने में लगा रहता है, तो यह स्पष्ट है कि वह आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर नहीं बढ़ रहा। इसीलिए, जब भी हम सत्संग में जाएं, तो हमें सेवा, सुमिरन और सकारात्मकता पर ध्यान देना चाहिए।

माया का दुरुपयोग और उसका परिणाम

कभी-कभी लोग देखते हैं कि कुछ व्यक्ति माया (धन-संपत्ति) का दुरुपयोग कर रहे हैं, धार्मिक स्थानों के धन को अपने स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहे हैं। लेकिन हमें इस पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय अपने मार्ग पर चलना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति धार्मिक स्थान का धन लेकर अपने स्वार्थ में लगा रहा है, तो वास्तव में वह आध्यात्मिक भिखारी ही है। यह धन, जो ईश्वर की भक्ति और सेवा के लिए समर्पित किया गया था, यदि कोई उसे अनुचित कार्यों में उपयोग कर रहा है, तो यह उसका दुर्भाग्य है।

कर्म का नियम अटल है। जो व्यक्ति गलत साधनों से धन एकत्र करता है या सत्संग के नाम पर छल करता है, वह कुछ समय बाद ही अपने कर्मों का फल भोगने लगता है। समय उसे अपने आप सही जगह पर ला खड़ा करता है। इसलिए हमें इन बातों में उलझने की बजाय अपने आध्यात्मिक लक्ष्य पर केंद्रित रहना चाहिए।

सत्संग का वास्तविक उद्देश्य

हमें यह याद रखना चाहिए कि सत्संग केवल एक सामाजिक सभा नहीं है, यह आत्मशुद्धि का एक पवित्र अवसर है। जब भी हम सत्संग जाएं, हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:





  1. – जब हम दूसरों की बुराई में समय लगाते हैं, तो हम अपने आत्मिक विकास से चूक जाते हैं।
  2. सेवा, सुमिरन और ध्यान पर जोर दें – सेवा से विनम्रता आती है, सुमिरन से मन शांत होता है, और सत्संग से सही दिशा मिलती है।
  3. नकारात्मकता से दूर रहें – अगर हमें किसी स्थान पर गलत होता हुआ दिखता भी है, तो हमें इसे समय पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि समय अपने आप न्याय कर देगा।
  4. अपनी दृष्टि को सकारात्मक बनाएं – सत्संग में हमें केवल अच्छाई को देखने और सीखने की आदत डालनी चाहिए।

निष्कर्ष

सच्चा भक्त वही है जो परमात्मा के रंग में रंगकर अपने जीवन को दिव्यता से भरता है। उसे न दूसरों की कमियों से मतलब होता है और न ही संसार की नकारात्मकता से। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि जो जैसा करेगा, वैसा ही पाएगा। इसीलिए अपने जीवन को सुंदर बनाने के लिए केवल सेवा, सुमिरन, और सत्संग में समर्पित भाव से जुड़ें, न कि आलोचना और बुराई में। तभी हमारा जीवन सच्चे आनंद और शांति से भर सकेगा।

धन निरंकार जी।

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