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मैं तेरे सत्संग की बुराई करूंगा तू मेरे सत्संग की बुराई करिए #Nirankarivichar2025 #rampal



महापुरुषों ने कितनी सुंदर बात कही है कि सत्संग का उद्देश्य मानव जीवन को सुधारना और उसे सच्चाई, प्रेम और एकता के मार्ग पर ले जाना है। लेकिन आजकल देखा जाता है कि कुछ लोग अपने सत्संग को श्रेष्ठ सिद्ध करने के प्रयास में दूसरे सत्संग की बुराई करने लगते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल सत्संग के वास्तविक उद्देश्य को बाधित करती है, बल्कि संतों और भक्तों के बीच भ्रम और वैमनस्य का कारण भी बनती है।

सत्संग का वास्तविक उद्देश्य

सत्संग का अर्थ है 'सत्य के संग'। यह एक ऐसा मार्ग है, जो हमें ईश्वर से जोड़ने, मानवता के प्रति प्रेम जगाने और सत्य को पहचानने की प्रेरणा देता है। हर सत्संग का उद्देश्य एक है—संसार में शांति, प्रेम और सामंजस्य स्थापित करना। यदि कोई व्यक्ति दूसरे सत्संग की बुराई करके अपने सत्संग को ऊंचा दिखाने की कोशिश करता है, तो वह इस उद्देश्य से भटक जाता है।

बुराई के परिणाम

  1. भ्रम का वातावरण: सत्संग के अनुयायियों में संदेह और असहमति उत्पन्न होती है।
  2. एकता का अभाव: बुराई करने से भक्तों के बीच दूरी और मनमुटाव बढ़ता है।
  3. सत्संग का अपमान: जब एक सत्संग दूसरे की बुराई करता है, तो वह अपने ही उद्देश्य को कमजोर करता है।

समाधान के लिए मार्गदर्शन

  1. सकारात्मक संदेश दें: हर सत्संग को अपने विचार, अपने सिद्धांत, और अपने मार्ग की अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए। संतों को प्रेरित करना चाहिए कि वे प्रेम, करुणा, और मानवता की बातें करें।

  2. बुराई करने से बचें: संतों और अनुयायियों को यह समझना चाहिए कि हर सत्संग का अपना महत्व है और उसका उद्देश्य भी एक है—संसार को सत्य और प्रेम के मार्ग पर लाना।

  3. एकता पर जोर दें: सभी सत्संगों को एक साथ आकर यह प्रयास करना चाहिए कि लोग ईश्वर को एक मानें और मानवता को सर्वोपरि रखें।

  4. संदेह दूर करें: यदि किसी को दूसरे सत्संग के बारे में कोई शंका है, तो उसे संवाद के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए, न कि बुराई के माध्यम से।

निष्कर्ष

सत्संग का सार मानवता को जोड़ना और सत्य की ओर प्रेरित करना है। एक-दूसरे की बुराई करके हम केवल अपने उद्देश्य से भटकते हैं। इसलिए, हमें इस विचार को अपनाना चाहिए कि हर सत्संग सत्य के मार्ग का प्रचार कर रहा है और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

आओ मिलकर सतगुरु माता जी के चरणों में अरदास करें कि हम सभी अपने विचारों में पवित्रता लाएं, दूसरों की अच्छाइयों को पहचानें और सत्संग के वास्तविक उद्देश्य को समझते हुए प्रेम और एकता का वातावरण बनाएं।
धन निरंकार जी।

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