Type Here to Get Search Results !

जब कोई व्यक्ति अपने आसपास के संतों और महापुरुषों को छोटा समझने लगता है #nirankarivichar nirankari viochar today

 निरंकार की शक्ति को जानने वाला इंसान जब अपने भीतर इस अनुभूति को जागृत कर लेता है कि सृष्टि में जो कुछ भी है, वह उसी की कृपा और रहमत का प्रतिफल है, तब उसका मन एक अनूठी शांति का अनुभव करता है। लेकिन यदि वही इंसान इस अनुभूति के बावजूद स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे, यह सोचने लगे कि सबसे बड़ा मैं ही हूं, मेरी तुलना में कोई और नहीं, तो वह सबसे बड़ी भूल कर रहा होता है। अहंकार की यह भावना उसे धीरे-धीरे आत्मज्ञान से दूर ले जाने लगती है, और वह अपनी ही सोच के बंधनों में जकड़ता चला जाता है।

जब कोई व्यक्ति अपने आसपास के संतों और महापुरुषों को छोटा समझने लगता है, उनके विचारों को तुच्छ मानने लगता है, तो वास्तव में उसकी सोच और विचारधारा में गिरावट आने लगती है। वह यह भूल जाता है कि हर संत, हर महापुरुष, निरंकार की ही एक सुंदर झलक होते हैं, और उनके द्वारा कहे गए वचनों में गहरी अनुभूति और सत्यता छिपी होती है। लेकिन जब मनुष्य अपने ही भ्रमों में उलझकर स्वयं को सर्वोपरि मानने लगता है, तब धीरे-धीरे उसके भीतर का आध्यात्मिक प्रकाश मंद पड़ने लगता है।

निरंकार की रहमतें किसी भी मनुष्य को अहंकार की ओर नहीं ले जातीं, बल्कि वह तो हमें यह सिखाने के लिए होती हैं कि हम अधिक विनम्र, अधिक सहज और अधिक प्रेमपूर्ण बनें। लेकिन यदि कोई व्यक्ति यह समझ बैठे कि यह सब मेरे कारण है, यह मेरी उपलब्धि है, तो वह दरअसल उस रहमत को पहचान ही नहीं पाया। रहमतें उसी पर बरसती हैं जो स्वयं को विनम्र बनाए रखता है, जो यह मानता है कि सब कुछ उसी निरंकार की देन है और मैं केवल एक माध्यम हूं। लेकिन जब इंसान खुद को सबसे ऊँचा समझने लगे, तो वह अपने भीतर छिपी दिव्यता को खोने लगता है।

अहंकार का यह जहर जब किसी के भीतर फैलता है, तो वह न केवल स्वयं के लिए बल्कि अपने आसपास के वातावरण के लिए भी एक नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने लगता है। जब कोई स्वयं को बड़ा और दूसरों को छोटा समझता है, तब उसका व्यवहार बदल जाता है। उसका स्वभाव कठोर होने लगता है, और वह धीरे-धीरे प्रेम और करुणा से दूर हटने लगता है। ऐसे व्यक्ति को यह महसूस ही नहीं होता कि वह अपने ही कर्मों से अपने लिए एक ऐसा संसार तैयार कर रहा है जहाँ शांति, आनंद और सच्ची संतुष्टि के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता।

निरंकार से मिलने वाली सच्ची खुशियां और आध्यात्मिक शांति तब ही प्राप्त होती हैं जब हम अपने अहंकार को त्यागकर एक सहज भाव से इस सृष्टि को देखने लगते हैं। लेकिन यदि कोई यह समझे कि मेरे ज्ञान से बड़ा कोई और नहीं, मेरी सोच सबसे सही है, और बाकी सब मुझसे छोटे हैं, तो वह धीरे-धीरे उस अनमोल ज्ञान से दूर होता जाता है जो उसे वास्तव में सुख और शांति प्रदान कर सकता था।

कई बार हम देखते हैं कि कोई व्यक्ति जब आध्यात्मिक उन्नति की राह पर चलता है, सेवा करता है, सत्संग करता है, तो वह अपने भीतर एक नई ऊर्जा को महसूस करता है। लेकिन यदि इसी ऊर्जा को वह अपने अहंकार का आधार बना ले और यह समझे कि अब मैं सबसे ऊपर हूं, तो यह आध्यात्मिकता का नहीं बल्कि उसके विनाश का मार्ग बन जाता है। सेवा और सत्संग का उद्देश्य यह नहीं कि हम दूसरों से श्रेष्ठ बन जाएं, बल्कि यह है कि हम अपने भीतर की विनम्रता को बनाए रखते हुए हर किसी के साथ प्रेमपूर्वक जुड़ सकें।

जो व्यक्ति यह समझता है कि वह सबसे बड़ा है, वह धीरे-धीरे अपने भीतर के आत्मिक सौंदर्य को नष्ट कर लेता है। उसकी वाणी कठोर हो जाती है, उसके विचार संकीर्ण होने लगते हैं, और वह अपनी ही दुनिया में कैद हो जाता है। ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे अपने ही मार्ग से भटकने लगता है, और जब वह निरंकार से मिलने वाली रहमतों से वंचित हो जाता है, तब उसे यह भी समझ नहीं आता कि वह गलती कहाँ कर रहा है। वह संतों की संगति से दूर हो जाता है, उसके भीतर नकारात्मक विचार जन्म लेने लगते हैं, और उसका हृदय संकीर्णता की ओर बढ़ने लगता है।

लेकिन अगर वह समय रहते अपने भीतर झांक कर देखे, अपने विचारों का विश्लेषण करे, तो उसे समझ आ सकता है कि सच्ची आध्यात्मिकता और निरंकार का वास्तविक अनुभव केवल अहंकार रहित मन में ही जन्म ले सकता है। जब मनुष्य यह स्वीकार कर लेता है कि सब कुछ उसी प्रभु की देन है, और मैं केवल उसका एक माध्यम हूं, तब ही उसे सच्ची आनंद की अनुभूति होती है।

इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने भीतर की चेतना को जागृत रखें और इस बात को कभी न भूलें कि यह संसार निरंकार की रचना है। हमें कभी भी अपने आपको सबसे बड़ा नहीं समझना चाहिए, बल्कि हमेशा यह मानना चाहिए कि हम सब उसी के प्रेम के हिस्से हैं और हमें मिलकर प्रेम और विनम्रता के साथ रहना चाहिए। संतों और महापुरुषों की संगति को हमें अपने जीवन का मार्गदर्शक बनाना चाहिए, क्योंकि वे हमें उस राह पर ले जाते हैं जो हमें सच्चे आनंद और शांति की ओर ले जाती है।

निरंकार की रहमतें हर किसी पर बरसती हैं, लेकिन उन्हें पाने के लिए हृदय का विनम्र और सच्चे प्रेम से भरा होना आवश्यक है। अहंकार हमें इस कृपा से वंचित कर देता है और हमें अपनी ही बनाई हुई एक संकीर्ण दुनिया में कैद कर देता है। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने भीतर हमेशा प्रेम, करुणा, और समर्पण की भावना को बनाए रखें, ताकि हम हमेशा निरंकार की कृपा में बने रहें और अपने जीवन को सच्चे आनंद से भर सकें।

धन निरंकार जी।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

sewa