क्या निरंकार को धन की आवश्यकता है, या अच्छे इंसानों की?
अक्सर हम धार्मिक स्थलों और संस्थाओं में धन अर्पित करते हैं, यह सोचकर कि इससे निरंकार (परमात्मा) प्रसन्न होंगे। लेकिन क्या सच में परमात्मा को हमारी दी हुई माया (धन) की आवश्यकता होती है?
धन से नहीं, कर्म से संतुष्ट होता है निरंकार
निरंकार परम शक्तिशाली, असीम और अखंड है। इस सृष्टि में हर प्राकृतिक वस्तु उसी की देन है—सूरज, चाँद, हवा, पानी, वनस्पति—सभी उसकी रचनाएँ हैं। अगर उसे धन की आवश्यकता होती, तो वह अपनी असीम ऊर्जा से असीम धन उत्पन्न कर सकता था। लेकिन उसकी वास्तविक खोज धन के पीछे नहीं, बल्कि अच्छे इंसानों के लिए है।
धन का उद्देश्य क्या है?
धर्मस्थलों में दिया गया धन किसी संस्था, सत्संग, लंगर, शिक्षा, सेवा, और जरूरतमंदों की सहायता में लगाया जाता है। यह धन समाज में समरसता और सेवा के कार्यों के लिए आवश्यक हो सकता है, लेकिन यह न मानें कि निरंकार इसे अपने लिए मांग रहा है।
सच्ची भक्ति क्या है?
निरंकार को खुश करने के लिए धन अर्पण से अधिक जरूरी है—सच्ची मानवता अपनाना। प्रेम, करुणा, सेवा, और सत्संग में आचरण से ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
निष्कर्ष
परमात्मा को पैसों की जरूरत नहीं, उसे सच्चे, सेवाभावी और नेक इंसान चाहिए। जब हम सेवा, समर्पण और सच्चाई से जीवन व्यतीत करते हैं, तभी निरंकार प्रसन्न होते हैं। इसलिए, अगर हम सच्चे भक्त बनना चाहते हैं, तो हमें धन नहीं, बल्कि अपने आचरण और कर्मों को शुद्ध बनाना होगा।
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