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 सत्संग और सेवा: घर से शुरुआत

रेखा एक समर्पित महिला है जो हर रविवार को अपने पास के सत्संग में जाती है। वहाँ, वह सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है, सत्संग सुनती है, और ध्यान करती है। सत्संग के दौरान, उसकी चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है। वह अन्य भक्तों के साथ मिलकर प्रसाद वितरण करती है, मंदिर की सफाई में मदद करती है, और सत्संग के आयोजन में भी अपनी भूमिका निभाती है। उसकी सेवा और समर्पण को देखकर हर कोई उसकी तारीफ करता है।

हालांकि, सत्संग से घर लौटते ही रेखा का स्वभाव एकदम बदल जाता है। घर पर उसके पति मोहित और दो बच्चे, आर्यन और नेहा, उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। लेकिन रेखा का मन घर की जिम्मेदारियों में नहीं लगता। मोहित के काम को वह नकारात्मक नजरिए से देखती है और उसे सहयोग नहीं करती। खाना बनाने में उसका मन नहीं लगता, जिससे खाने का स्वाद भी अच्छा नहीं होता। बच्चों के साथ बातचीत में भी उसकी रुचि कम होती है, और वह समय पर उन्हें खाना नहीं देती।

रेखा की यह दोहरी भूमिका एक गहरा संदेश देती है। सेवा और सत्संग की महत्ता को समझने वाली रेखा घर पर अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज कर रही है। वास्तव में, सच्ची सेवा की शुरुआत घर से होती है। सत्संग में सेवा करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करें।

एक दिन, सत्संग में एक प्रवचन के दौरान गुरुजी ने कहा, "सेवा का असली रूप घर से शुरू होता है। यदि आप अपने घर में सेवा नहीं कर सकते, तो बाहरी सेवा का कोई अर्थ नहीं है। परिवार की सेवा करना सबसे बड़ी सेवा है।" रेखा ने गुरुजी के शब्दों को गंभीरता से सुना और समझा कि उसके जीवन में एक बड़ा बदलाव आवश्यक है।

उसने ठान लिया कि वह अब अपने परिवार के प्रति भी उतनी ही समर्पित रहेगी जितनी वह सत्संग में रहती है। अगले दिन से ही, उसने अपने पति और बच्चों के लिए प्यार और देखभाल के साथ खाना बनाना शुरू किया। उसने बच्चों के साथ समय बिताया, उनकी पढ़ाई में मदद की और उन्हें समय पर खाना दिया। धीरे-धीरे, घर में शांति और सुख का माहौल बनने लगा।

रेखा ने महसूस किया कि परिवार के प्रति समर्पण और सेवा की भावना ने उसके जीवन को और भी ज्यादा अर्थपूर्ण बना दिया है। सत्संग में अब वह पहले से भी अधिक खुशी और शांति का अनुभव करती है क्योंकि वह जानती है कि उसने अपने परिवार की सेवा में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। घर और सत्संग, दोनों जगह उसकी सेवा और समर्पण ने उसे सच्चे अर्थों में एक समर्पित और संतुलित जीवन जीने वाला व्यक्ति बना दिया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची सेवा की शुरुआत हमारे घर से होती है। जब हम अपने परिवार की सेवा करते हैं, तब हम असली सेवा की भावना को समझते हैं और उसका सही अर्थ जान पाते हैं। सत्संग और बाहरी सेवा का महत्व तभी है जब हम अपने घर में भी उसी सेवा भावना को अपनाते हैं।


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