हमारे समाज में सेवा, सिमरन, और सत्संग जैसे शब्दों का महत्व बहुत अधिक है। यह वे आदर्श हैं जिनके आधार पर एक समाज का निर्माण होता है और यही वह स्तंभ हैं जिन पर एक व्यक्ति की आत्मिक और सामाजिक उन्नति निर्भर करती है। परंतु, आज के समय में, कुछ लोग इन पवित्र आदर्शों का दुरुपयोग कर अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति कर रहे हैं।
अधिकतर देखा गया कि छोटे इलाके यानी गली मोहल्ले में जो छोटे से इंचार्ज बना दिए जाते उनका मकसद केवल संयोजक प्रसन्न करना और और उनकी चमचागिरी करके छोटे इंचार्ज से बड़ा इंचार्ज बनने की इच्छा बनी रहती है उनकी सोच का केंद्र यह होता है कि किस प्रकार से वे मंडल के कार्यों में अपना नाम प्रसिद्ध कर सकें और धीरे-धीरे एक बड़े इंचार्ज बन जाएं। उनकी महत्वाकांक्षा यहीं खत्म नहीं होती, वे अपने पद का उपयोग कर दूसरों पर हुकुम चलाने की कोशिश करते हैं और अपनी जिंदगी को माया के माध्यम से अच्छा बनाने की योजना बनाते हैं।
यह एक गंभीर समस्या है। ऐसे लोग सेवा और सिमरन के वास्तविक अर्थ को भूल जाते हैं और सत्संग का मात्र एक बहाना बनाते हैं। वे सेवा का दिखावा करते हैं, सिमरन के नाम पर पाखंड फैलाते हैं, और सत्संग के मंच पर अपनी महिमा का बखान करते हैं। इससे समाज में भ्रांति फैलती है और लोग असली आध्यात्मिक मार्ग से भटक जाते हैं।
सेवा का असली अर्थ है नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करना। यह एक ऐसा कार्य है जिसमें किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं होता। सिमरन का अर्थ है ईश्वर का ध्यान, जो आत्मा को शुद्ध करता है और सच्चे आनंद का स्रोत है। सत्संग का उद्देश्य होता है सत्य के साथ संगति करना, जहां सच्चे ज्ञान और आत्मिक उन्नति की बातें होती हैं।
परंतु, जब लोग इन आदर्शों का दुरुपयोग करने लगते हैं, तो वे समाज के लिए एक बड़ा खतरा बन जाते हैं। वे लोगों को बहकाते हैं, उन्हें भ्रमित करते हैं, और उनके विश्वास का दोहन करते हैं। ऐसे लोगों की वजह से ही समाज में अविश्वास और नकारात्मकता फैलती है।
यह अत्यंत आवश्यक है कि हम ऐसे लोगों की पहचान करें और उनके बहकावे में न आएं। सेवा, सिमरन, और सत्संग का वास्तविक अर्थ समझें और उन आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करें। हमें उन लोगों से सावधान रहना होगा जो इन पवित्र आदर्शों का दुरुपयोग कर समाज को गुमराह करते हैं।
याद रखें, सच्ची सेवा, सिमरन, और सत्संग वही है जो नि:स्वार्थ भाव से किया जाए और जिसका उद्देश्य समाज की भलाई हो, न कि व्यक्तिगत लाभ। हमें अपने जीवन में इन आदर्शों को सही मायनों में अपनाना चाहिए और समाज को भी इनके वास्तविक स्वरूप से अवगत कराना चाहिए।
आइए, हम सब मिलकर इस भ्रांति और बहकावे के जाल को तोड़ें और एक सच्चे, शुद्ध, और स्वार्थहीन समाज की नींव रखें।